Monday, September 6, 2010

अहिंसा...अहिंसा जपत..जपत बनत जा रहे कायर

थोड़ा अजीब सी तुकबंदी है। पर इसे पढऩे के बाद आपको अर्थ समझ आ जाएगा। अच्छा पड़ोसी कौन? वही जो सुख में न सही, दुख में आपके साथ खड़ा रहे। चाहे आप उससे खुश रहो, चाहे उसको गाली दो या जूते मारो। अपने भारत देश की तरह। अब देखिये न कि हम कितने अच्छे पड़ोसी हैं, पड़ोसी मुल्कों पर जरा सी मुसीबत आई नहीं कि खड़े हो गये मदद का झंडा लेकर। यार मुसीबत में है अपना, मदद करनी चाहिए। हमने अपने हर पड़ोसी की हर बुरे वक्त में मदद की है, बिना किसी निजी स्वार्थ के।
नापाक पाकशुरुआत करते हैं अपने पहले और सबसे अहम पड़ोसी की। ठीक समझे पाकिस्तान। न केवल पड़ोसी है, बल्कि हमारे सियासतदां तो उसे अपना भाई तक बताते हैं। अब देखिये क्या है कि पिछले दो महीनों से बाढ़ से बेहाल है बेचारा। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ें कहते हैं कि 2000 के आस-पास लोग 80 साल में पहली बार आई इतनी भीषण बाढ़ में अकाल मौत का शिकार हुए हैं। तकरीबन 2 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं, 12 लाख घर तबाह हो गये हैं, 50 लाख लोग बेघर हो गये हैं और कुल उपजाऊ भूमि का 14 प्रतिशत हिस्सा (32 लाख हेक्टेयर) क्षतिग्रस्त हो गया है। कई वेबसाइटों पर पाक की त्रासदी की तस्वीरें देखीं हैं और तस्वीरें कभी झूठ नहीं बोलतीं। कम से कम इतनी भयानक त्रासदी की तो नहीं। ये तस्वीरें बहुत ह्दयविदारक भी हैं। ऐसे आड़े वक्त में पाकिस्तान की मदद करने से उसके खैरख्वाहों ने अपने कदम पीछे खींच लिये (उसकी हरकतों की वजह से)। चाहे बात अमेरिका की हो या चीन की हो या किसी दूसरे इस्लामिक मुल्क की। पर अपने भारत ने बखूबी उसका साथ दिया। मदद दी। पहले 50 लाख डालर (23 करोड़ रुपए) की मदद का ऐलान किया। पर पाकिस्तान ने इसे लेने में आनाकानी की। बाद में अमेरिका के दबाव में उसने इसके लिए हामी भर दी। पर इसके लिए भी पूरी बेशर्मी से शर्त ठोंक दी-संयुक्त राष्ट्र के रास्ते मदद दो तब स्वीकार करेंगे। इतनी हेठी भी ठीक थी। लेकिन वहां की मीडिया तो हुक्मरानों से ज्यादा बेशर्म निकला। ऐसे कठिन वक्त में जब अपने देश के हालातों को दुनिया के सामने मजबूती से रखना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मदद हासिल करते, उन्होंने फिजां में जहर घोला। भारत के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। कश्मीर के मुद्दों को तूल देकर भारत के खिलाफ साजिश रचता रहा। कहता रहा भारत जब तक कश्मीरियों को उनकी आजादी का हक नहीं देता,तब तक पाक को भारतीय मदद स्वीकार नहीं करना चाहिए। अब भारत तो ठहरा भारत-सब सह गया। मदद की पेशकश लगातार करता रहा। इतना ही नहीं हमारे देश ने मदद की रकम बढ़ा कर 2.50 करोड़ डालर कर दी। इतनी सह्दयता सेे तो कट्टर दुश्मन को भी शर्म आ जाए। लेकिन बेशर्म पाकिस्तान को देखिये बाढ़ का दोष भी भारत के माथे मढ़ दिया। कहा भारत ने पानी छोड़ा तभी बाढ़ आई। पाक मीडिया के एक अंग पाकनेशनलिस्ट्स.कॉम ने आरोप लगाते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर से होकर बहने वाली कई नदियां पाक के पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान से होकर गुजरती हैं और भारत ने इन नदियों पर कई बांध बना रखे हैं। बगलिहार बांध को जानबूझकर खोला गया, ताकि पाक में बाढ़ आ जाए। हिमालय पर बर्फ पिघलने से पाक के मैदानी इलाकों में आई बाढ़ का कोई मतलब नहीं है। वेबसाइट के मुताबिक अगर यह प्राकृतिक बाढ़ होती तो इसका असर भारत और अफगानिस्तान पर भी पड़ता। इसके अलावा पाक में पिछले कुछ दिनों में ज़्यादा बारिश नहीं हुई है, लेकिन नदियों का पानी बढ़ता जा रहा है। पाकनेशनलिस्ट्स.कॉम ने पाक के उत्तर-पश्चिम सूबे में सत्ता में मौजूद एएनपी पर भी भारत और अफगानिस्तान के साथ मिलकर पाक विरोधी काम करने का आरोप लगाया है। वेबसाइट ने तर्क दिया, एएनपी ने कालाबाग बांध के बनने का हमेशा विरोध करती रही है। अगर यह बांध बना होता तो पाकिस्तान में हजारों जि़ंदगियां बच सकती थीं। इस आरोप के बाद भी हमारी सरकार ने मदद का झंडा बुलंद किया हुआ है। ये नहीं कि लगाएंगे दो कान के नीचे। और बंद करें मदद। लेकिन नहीं साहब हम बड़े भाई का फर्ज निभाएंगे। हमने पूरी मदद दी, न केवल पैसे से बल्कि दूसरी राहत सामग्रियों से भी। फिर भी बेशर्म पाक नहीं शर्माया। उसने दूसरा आरोप जड़ा क्रिकेट के लिए। पाक के नापाक क्रिकेटर अपनी करतूतों की वजह से पूरे देश की थू-थू करवा रहे हैं, जब आईसीसी ने जांच में ये दोषी पाए गये, तो उसका ठीकरा भी भारत के सिर फूटा। कहा कि भारत ने हमारे खिलाड़ी तो निर्दोष हैं, सटोरिया तो भारतीय है। इसके पीछे भारत की साजिश है। बचारे शरद पवार को आईसीसी का अध्यक्ष बनना महंगा पड़ गया। इतने आरोप बाप रे बाप।
नामसमझ नेपाल: अपना दूसरा पड़ोसी- नेपाल। ज्यादा नहीं है बेचारे की औकात हमारे सामने। अभी जुमां-जुमां चार दिन हुए राजशाही से स्वतंत्रता हुए। लेनिक देखिये इनको आज तक लोकतंत्र के बाद भी स्थिर सरकार नहीं बन पा रहे। प्रचंड और माधव कुमार में से कौन इस पद पर बैठेगा का इसका निर्णय आज तक नहीं हो पा रहा है। छह बार सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री चुनने की कोशिश कर चुके हैं, पर सफल नहीं हो रहे। ये नाटक हुआ है 21, 23 जुलाई, 2, 6 और 23 अगस्त और हालिया छठवीं बार 5 सितंबर को। अब यह उनके देश की बात है। हमें क्या? पर ऐसा नहीं है जनाब। अब नेपाल बदल चुका है। वो हमारा प्यारा नेपाली भाई नहीं रहा। उसने भी भारत को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है। बानगी देखिये- 5 सितंबर को प्रधानमंत्री चुनाव के ठीक एक दिन पहले ही ऐसा कुछ हुआ है कि भारत को सचेत हो जाना चाहिए। दरअसल मीडिया में खबर आई कि चीन नेपाल के सांसदों की खरीद-फरोख्त की कोशिश कर रहा है। बोली लगी 50 सांसदों के लिए 50 करोड़ रुपए। यहां तक तो सबकुछ ठीक रहा। पर आगे जो कुछ हुआ-भारत के लिए वह अच्छा नहीं है।जी हां इसका दोष भी लगा है भारत के सिर पर। ये आरोप लगाया है नेपाली प्रधानमंत्री के चुनाव से ठीक पहले माओवादी नेताओं ने। यह पूरा मामला कुछ ऐसा है कि शनिवार को एक ऑडियो टेप अचानक सामने आया, जिसमें माओवादी सांसद कृष्ण बहादुर म्हारा के एक व्यक्ति के साथ टेलीफोन पर बातचीत में सामने आया कि एक चीनी दोस्त प्रधानमंत्री पद के चुनाव में माओवादी उम्मीदवार पुष्प कमल दहल प्रचंड का समर्थन करने के लिए तराई की जातीय पार्टियों के सांसदों को खरीदने के लिए 50 करोड़ नेपाली रुपए देने का इच्छुक है। अब माओवादियों ने भारत पर दोषारोपड़ करते हुए कहा- इस टेप के पीछे भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का हाथ है। यह बयान बकायदा नेपाली समाचार पत्र जनसंदेश (माओवादी मुखपत्र) में छपा है। इसमें कहा गया है कि रॉ ने फर्जी टेप बनाया और बांटा है। इस लेख में दावा किया गया है कि 5 सितंबर को होने वाले चुनावों में माओवादी पार्टी की जीत सुनिश्चित समझकर रॉ ने नेपाली मीडिया में टेप डाला और उसके प्रसारण के लिए दबाव डाला। इन गोरखाओं को शर्म नहीं आई ऐसे आरोप लगाते हुए-जबकि वहां स्थिरता लाने के लिए भारत ने सबसे ज्यादा प्रयास किये थे। 23 नवंबर 2005 को माओवदियों एवं सात संसदीय पार्टियों के बीच समझौते में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। और अब भी की जब बार-बार की कोशिशें बेनजीता साबित होती रही। भारत ने अपने विशेष दूत श्याम शरण को वहां भेज कर माओवादियों और अन्य पार्टियों के बीच समझौता करवाने की कोशिश की। हालांकि यहां भारत फेल हो गया। दरअसल नेपाल में सत्ता को लेकर वैचारिक मतभेद इतने हो गये हैं कि वहां स्थिरता नहीं आ पा रही। हालांकि यहां स्पष्ट है कि चीन नेपाल को मोहरा बना कर भारत को घेरने की तैयारी कर रहा है।
चालाक चीन: अब चीन के बारे में क्या कहें। वह तो हमेशा से मुंह में राम बगल में छुरी लिये घूमता रहता है कि कब मौका मिले और भारत की पीठ लहूलुहान की जाये। अभी हाल ही में उसने नया पांसा फेंका है-भारतीय सेना के एक जनरल को जो कि कश्मीर में पोस्टेड थे, चीन का जाने का वीजा नहीं दिया। इतना ही नहीं चीन काफी पहले से ही कश्मीरियों को स्टेप्लड वीजा देता रहता है, हालांकि भारत ने इस पर अपनी आपत्ति भी उठाई पर चीन तो चीन है। मर्द है कभी झुका नहीं। इसके पीछे तर्क यह है कि चीन कश्मीर को स्वतंत्र मानता है। यहां तक भी ठीक था पर अब वह पाक अधिकृत कश्मीर के एक भाग गिलगित और बाल्टिस्तान में लगातार अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ा रहा है। यहां पर उसके एयरबेस तैयार करने भी शुरू कर दिये और 11000 सैनिकों को तैनात कर दिया है। हालांकि भारत के आपत्ति उठाने पर उसने उन सैनिकों को राहतकर्मी बताया, जो पाकिस्तान की मदद के लिए काम कर रहे हैं।चीन हर संभव भारत के खिलाफ काम कर रहा है। अभी ताजा जानकारी यह है कि चीन अपनी समुद्री सीमा को और मजबूत बनाने के लिए 20 हजार किमी. तक मार करने में सक्षम मिसाइल डेवलप कर रहा है। इसके पीछे तर्क है अपनी समुद्री सीमा को सुरक्षित रखना। यहां सुरक्षा विशेषज्ञों भी मान रहे हैं कि भारत के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। उसे सावधान रहते हुए खुद को मजबूत बनाना होगा और चीन को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है इन हरकतों के पीछे चीन की मंशा दुनिया में बहुध्रुवीय बनने और बीजिंग की स्वीकार्यता बढ़ाने को लेकर है, इतना ही नहीं वह ताकत चाहता है, पूरे एशिया पर राज करना चाहता है। लेकिन बीच में रोड़ा है भारत। चीन चाहता है कि अमेरिका उसके आगे झुक जाए। इसकी शुरुआत हो चुकी है- सोमवार को तब जब अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थामस डोनिलोन और अमेरिकी राष्ट्रीय आर्थिक परिषद के अध्यक्ष लैरी समर्स के नेतृत्व में एक दल चीन पहुंचा और संबंधों को सुधारने के लिए कोशिशें शुरू कीं।
मुद्दे पर वापस आते हैं- अहिंसा...अहिंसा, जपत...जपत बनत जा रहे कायर। इस शीर्षक का जवाब अब शुरू होता है। फैसला आप करें ठीक है या नहीं-अब देखिये भारत के तीन ओर तीन पड़ोसी हैं। जो लगातार अपने खतरनाक मंसूबे को अंजाम देने में जुटे हुए हैं। पर जनता द्वारा चुनी गई, जनता की सरकार, जिसे सिर आंखों पर बैठाए हैं कैसा बर्ताव कर रही है। पाक की बार-बार की टें-टें चालू है, और हम मुंबई में मारे गये उन 200 लोगों को भूल कर फिर बात कर रहे है, मदद के लिए कर्ण बनने की तैयार बैठी है। उधर नेपाल भी शुरू हो चुका है डै्रगन का हाथ पीठ पर है, और हमारी सरकार है कि उसके कानों पर न तो जूं रेंग रही और न ही कुछ दिखाई दे रही। मोतियाबिंद हो गया है इनको। जबकि दुनिया की मानी हुई खुफिया एजेंसियां और खुद रॉ भी बार-बार चीन की बढ़ती ताकत और भारत के खिलाफ साजिश से अवगत करा रही हैं। पर हमारे माननीय विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री और स्वंय प्रधानमंत्री भी इन रिपोर्टों को नकारते रहते हैं। कब जागेंगे ये सब जब चीन 1962 की तरह एक बार फिर हिंदी-चीनी भाई-भाई करता पिछवाड़े पर लात मारेगा तब।हकीकत यह है कि चीन को छोड़कर कोई भी ऐसा पड़ोसी नहीं है, जो हमारे मुकाबले खड़ा हो सके। और न तो हम इतने कमजोर हैं कि हम इन टुच्चे देशों से दब जाएं। न इनकी इतनी औकात कि ये हम पर धौंस जमा सकें।लेकिन क्या है न कि बापू तो चले गये यह कह कर कि कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा आगे कर दो। वो भी मुस्कराकर। पर उनके नाम पर सत्ता पर काबिज उनके इन कपूतों को यह नहीं पता कि बापू ने तीसरे थप्पड़ सहने के लिए नहीं कहा था। उन्हें शायद याद नहीं कि तीसरा गाल नहीं होता, तीसरा पिछवाड़ा ही होता है, जहां थप्पड़ नहीं लात पड़ती है। पर बापू की अहिंसा के पाठ का जाप करते-करते ये सत्तालोलुप नुमाइंदे भूल गये कि अहिंसा भी उन्हीं की शोभा बढ़ाती है, जो ताकतवर है। कमजोर अहिंसा का जाप करे तो उसे कायर समझा जाता है। जनाब! ध्यान रखिये कहा गया है-अति सर्वत्र वर्जये। सो जरूरत से ज्यादा अहिंसा..अहिंसा का जरुरत से ज्यादा जाप कहीं कायरता की निशानी न बन जाए।

1 comment:

Garima Vijayvargia said...

inme se ek bhee desh ko agar bharat ne kaan ke neeche lagaya, to use america bhee to kaan ke neeche laga dega, yahee ek dar to hai jiske chalte bharat ke paas thappad sahne ke liye teesra gaal bhee paida ho gaya hai...