Friday, April 8, 2011

शुक्रिया मि. अफरीदी...

शुक्रिया मिस्टर अफरीदी कि आपने भारत को उसके दिल के बारे में बता दिया। और हां आपका भी शुक्रिया मिस्टर राजपक्षे। क्रिकेट वल्र्ड कप का खुमार उतर गया, पर आप दोनों पर हमारी जीत का जश्न अब तक चल रहा है। हमें तो अब भी याद है कि किस तरह भारत ने क्वार्टर फाइनल में आस्ट्रेलिया को धोकर अपने फार्म में वापसी की थी। और 121 करोड़ हिंदुस्तानियों के साथ ही विश्लेषकों का भरोसा भी पक्का किया था कि वह फाइनल खेलेगा। और हमारे भरोसे का क्या असर हुआ, यह सबके सामने है। अफरीदी जी, अब सेमीफाइनल में आपकी किस्मत खराब थी और इतिहास ने खुद को एक बार फिर दोहरा ही दिया। तो इसमें हमारी क्या गलती। चलिये एक बात बताइये: यहां से जाने के बाद तो आपने भी यह कहा था कि भारत से दुश्मनों जैसा बर्ताव क्यों। क्रिकेट को क्रिकेट की तरह क्यों नहीं लेते आप लोग। फिर अचानक एक दिन बाद ही खिसियानी बिल्ली जैसे खंभा क्यों नोचने लगे। वही पुराने पाकिस्तानियों की तरह रेंकने लगे: मुझे लगता है भारतीयों का दिल हम पाकिस्तानियों जैसा नहीं है। आपने देखा है हमारा दिल। आप शायद भूल गये, हम याद दिलाते हैं-: जब आपके मुल्क के बाशिंदों को सेमीफाइनल देखने का टिकट नहीं मिला था, तो हमारे चंडीगढ़, मोहाली और उसके आस-पास के क्रिकेट के दीवानों ने अपने टिकट उनको गिफ्ट किये थे। वो भी सिर्फ इसलिये क्योंकि वो मेहमान थे, और हम मेहमान को खाली हाथ नहीं जाने देते। उन टिकटों की कीमत का अंदाजा है अफरीदी साहब: हम बताते हैं पूरे 1 लाख रुपए। ये अगर कम लगता है तो हमारे दिल की बड़प्पन का एक नमूना और देखिये, जब आपके चाहने वालों को कहीं होटल में जगह नहीं मिली, तब भी हमारे लोगों ने उन्हें अपने घर में रखा, बिल्कुल एक अच्छे मेजबान की तरह, बिना यह सोचे कि ये वही पाकिस्तानी हैं, जहां के चंद लोग हमारी धरती को खून से रंग देते हैं। हमने आपके लोगों की जमकर खातिरदारी की। एक ऐसे समय में जब आपकी टीम बिल्कुल अछूत की तरह रही है, हमने उसका सम्मान वापस दिलाया। यहां तक की आपके वजीरेआजम गिलानी साहब की आवभगत में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी, बल्कि खुद हमारे खिलाड़ी तक भूखे रह गये। और आप कहते हैं हिंदुस्तानियों को अल्लाह ने हमारे जैसा बड़ा दिल नहीं दिया। आपने एक और बात कही: भारत के साथ टिकाऊ रिलेशनशिप नहीं हो सकती, पिछले 60 सालों में आपने लाख कोशिशें कीं, पर भारत की कमजोरी की वजह से कभी रिश्ते पनप नहीं पाए। आपको एक बात याद दिला दें कि आप पाकिस्तानी दिलों के बड़प्पन पर इतरा रहे हैं, उनमें से सैकड़ों दिल हिंदुस्तान के बड़े दिल और टिकाऊ रिलेशनशिप की चाह का नतीजा है। शायद याद न आ रहा हो, एक नजर डालिये: आपके मुल्क के दिल की ऐसी गंभीर बीमारी से पीडि़त मासूमों पर, जिनका इलाज न तो आपके प्यारे पाकिस्तान में हो रहा था, और न ही सिंगापुर जैसे विकसित मुल्क में, हमने धड़कनें दीं। उनमें से कुछ ये हैं-नूर, सईद रहीम, कुनूत बेग और हसीब। इनके सीने में पाकिस्तानी दिल धड़कता है, लेकिन उसकी वजह हमारा दिल है। आपके मुल्क की 9 महीने की बच्ची नूर के दिल का इलाज कर उसे जिंदगी दी थी। इससे पहले मार्च 2009 में आपके कलेजे के टुकड़े, सईद रहीम जो साल भर का भी नहीं था, के दिल में लगातार बहते खून को रोक कर उसे जिंदगी की सांसे दीं। दिल्ली के दिलवाले डाक्टर राजेश शर्मा ने एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट में उसका आपरेशन किया था। और खुदा गवाह है कि उसकी अम्मी नादिया और अब्बा सैयद सादत अली की खुशी के आंसू देखकर हमारी भी पलकें गीली हो गई थीं। हमारे दिल के बारे में नादिया से पूछिये- जो आज भी कहती हैं कि हिंदुस्तानियों ने हमारे बच्चे के लिए कितनी दुआएं की थीं। ऐसे ही दो बच्चों 12 साल के हसीब और 13 साला कुनूत बेग के दिल को हमारे बेंगलूर के जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवेस्कुल के डा. मंजूनाथ और उनकी टीम ने तब धड़कने दीं, जब आपके कराची के इंस्टीट्यूट साइंस ऑफ हास्पिटल इन पाकिस्तान ने ठीक करने से इनकार कर दिया था। हमारे दिल के बारे में पूछना है तो पूर्व कप्तान वसीम साहब से पूछिये, कि कैसे हमने मुंबई को मिले दर्द के अपने सीने में छुपा कर भी, उनकी बेगम हुमा का इलाज किया था। जब वो ऐसे बुखार से पीडि़त थीं, जिनका इलाज सिंगापुर में भी नहीं हो पाया था। हालांकि हम उन्हें जिंदगी नहीं दे पाये। जिसका अफसोस हमें आज भी है। इसके बाद भी आपको हमारा दिल छोटा लगता है, तो ठीक है। आपका दिल तो इतना बड़ा है कि वल्र्ड कप से बाहर होने के बाद आपने कामरान अकमल, युनूस खान और अब्दुल रज्जाक को ही टीम से लात मारकर बाहर निकाल दिया है। खैर आपका दिल बहुत बड़ा है साहब-तभी तो आपने अपने सबसे बड़े सितारे शोएब अख्तर साहब को इतने अहम मैच में बाहर बिठा कर रखा था। बेचारे शोएब उन्होंने तो मात्र संन्यास लेने की घोषणा की थी, पर वह लेते तो वल्र्ड कप के बाद ही न। खैर आपका दिल बड़ा है जनाब। टिकाऊ रिलेशनशिप की आपकी कोशिशों की आपको शायद खुशफहमी है। तो अब हकीकत से रूबरू होईये: भारत ने 26/11 हमले के बाद भी आपकी तरफ दोस्ती भरा हाथ बढ़ाया, सारी गल्तियों को माफ कर। थोड़ा पीछे चलते हैं: आपको याद होगा, कारगिल युद्ध के बाद भी हमने आपकी तरफ हाथ बढ़ाया था। राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने आगरा समझौता भी किया था, लेकिन कभी पालन नहीं किया। शिमला समझौते की तो खैर बात ही क्या करना। 5 अक्टूबर 2005 में जब भूकंप से पूरा पाकिस्तानी कश्मीर और हमारे कश्मीर ने भूकंप की तबाही का मंजर देख रहा था, उस वक्त भी आपकी मदद के लिए सबसे पहले हमारे ही हाथ उठे थे। आपके 67 हजार पीडि़तों के लिए हमने सबसे पहले तीन कंसाइटमेंट सहायता सामग्री आपके लिए भेजी थी। जबकि हमारे लोग भी इस कहर से जूझ रहे थे। और शायद आप भूल गये, 2010 में पूरे पाक में आई उस जानलेवा बाढ़ को, जिसने आपको पूरी तरह बंजारा बना दिया था, रोटी-पानी नहीं था आपके पास, तब हमने रसद, पानी, टेंट और न जाने कितनी राहत सामग्री सबसे पहले भेजी थी। उसके बाद भी आप कहते हैं कि हमने टिकाऊ रिलेशनशिप के लिए कुछ नहीं किया। आपने तो 2006 में मुंबई के दिल को छलनी करने वाले गुनाहगारों को ही हमें नहीं सौंपा। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। आपने ने तो हिंदुस्तान के उस दुश्मन को भी अपने दामन में छुपा रखा है, जिसने आपकी शह पर 1993 में मुंबई में हमला धमाके किये, और उसके बाद भी जब-तब दूसरे शहरों में विस्फोट को अंजाम देता रहा है। उसने तो आपकी टीम के चेहरे पर भी फिक्सिंग की कालिख पोती है। घटनाएं और भी हैं, जब आपने दोस्ती की पर उसका फर्ज निभाने के वक्त पर पीछे हट गये। खैर आपका दिल बड़ा है, अब अपने बड़े दिल से अपनी हार का मातम मनाईये। माननीय राष्ट्रपति राजपक्षे जी: आपका और आपके नागरिकों का भी बहुत-बहुत धन्यवाद, भारत की 121 करोड़ जनता के विश्वास से हारकर उन्हें खुशी के दो पल देने के लिए। आप तो जब भी भारत आते हैं, यहां की धरती को चूमते हैं शायद इसीलिए आपने बतौर तोहफा यह जीत दे दी है। आपने भारत के नमक का हक अच्छा अदा किया है। राजपक्षे जी: शांति और खुशहाली की तरफ बढ़ते श्रीलंका पर राज करते हुए आप शायद लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम के बुरे दौर को भुल चुके हैंं। ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि एक मशहूर कहावत है: जो इतिहास को भुलाता है, उसे इतिहास भी कभी याद नहीं रखता। फिर चाहे वो श्रीलंका का राष्ट्रपति ही क्यों न हो। सो याद दिला दें- भारत, आस्टे्रलिया, अमेरिका ओर यूरोपीय संघ समेत 32 देशों में अपना मकडज़ाल फैलाने वाले वेलुपल्ली प्रभाकरन का आतंकी संगठन लिट्टे जब आपके नागरिकों की जान ले रहा था और आपकी संप्रभुता को चुनौती दे रहा था तो उस दौरान भारत ही आपके साथ खड़ा था। वो भी तब जब पूरा अंतरराष्ट्रीय कुनबा लिट्टे के खिलाफ आपके युद्ध में साथ देने से इनकार कर रहा था। आपको तो यह याद ही होगा, कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तब आपकी सहायता की थी। 1987 में उन्होंने भारतीय शांति सैनिकों को लिट्टे से लडऩे के लिए श्रीलंका भेजा था। हालांकि एहसान फरामोश श्रीलंकाईयों ने अपने मददगार पर तब 30 जुलाई 1987 को तब जानलेवा हमला कर दिया था, जब वो आपके राजकीय अतिथि थे और गार्ड ऑफ ऑनर ले रहे थे। अब बताइये फाइनल मुकबाले में आप सुरक्षि रहे कि नहीं। खैर इसी कड़ी में यह भी याद करें कि लिट्टे से लड़ाई में आपके 80 हजार से 1 लाख लोग मौत की भेंट चढ़ चुके हैं। और इस लड़ाई में हमने हमारे प्रधानमंत्री को भी खो दिया। आप भले चाहे भूल जाएं पर कोई भी हिंदुस्तानी 21 मई 1991 का वह काला दिन नहीं भूलेगा, जब लिट्टे के लोगों ने राजीव गांधी को बम से उड़ा दिया था। आपकी इस लड़ाई में 1990 तक हमने 1000 करोड़ झोंके थे। इतना ही नहीं हमारे 1 लाख शंाति सैनिकों ने भी आपकी लड़ाई में साथ दिया, जिसमें से 1200 सैनिक शहीद हो गये थे। तो यकीन मानिये आज जिस देश के राष्ट्र प्रमुख के रूप में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में 2 अपै्रल को फाइनल मैच का पूरे राजकीय सम्मान के साथ लुत्फ उठाया था और भारत की जीत के गवाह बने थे, वह शांति से भरा-पूरा श्रीलंका भारत की मेहरबानी से ही आपको मिला है। जाने दीजिये: अब यह बतायें: अगर ऐसा है तो आपकी टीम के कप्तान ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए वन डे और टी- 20 क्रिकेट से इस्तीफा क्यों दे दिया। जबकि क्रिकेट के दीवानों को मालूम है कि वह कितेन शानदार खिलाड़ी हैं। खैर आपकी टीम का प्रदर्शन काबिले तारीफ था। आपको एक बात याद दिलानी है: आपके यहां के आर्थिक हालात क्या हैं, यह आप भी बेहतर जानते हैं। तो आपके खिलाडिय़ों को हमने अपने यहां आईपीएल में जगह देकर कहां से कहां पहुंचाया आपको याद ही होगा। और एक बात जो सच है 121 करोड़ की दुआओं और 11 लोगों की चार सालों के खून पसीने की कमाई पर भला दो करोड़ श्रीलंकाईयों की दुआएं कैसे भारी पड़तीं। अब भला भगवान बुद्ध 121 करोड़ की दुआ कबूल करते या 2 करोड़ की। सो जब हमारी जीत के जश्न का खुमार कम हो रहा है, यह याद दिलाने के लिए कि कैसे हम चीतों को चपलता और रफ्तार में पीछे छोड़ते हुए विश्व विजेता बनें आपका धन्यवाद।

Sunday, March 27, 2011

प्यार की हवा...

कभी -कभी जिंदगी की जद्दोजहद में कुछ ऐसे नजारे सामने आ जाते हैं, जो दिल को गुदगुदा जाते हैं। ऐसा ही एक नजारा पिछले दिनों देखकर कर पुरानी यादें ताजा हो गईं। होली की रात थी और हम अपनी छत पर बैठे थे। रात के सवा बजे के आस पास का वक्त रहा होगा। हाथ में था कॉफी का मग, रेडियो पर बज रहे थे 70 के दशक के रोमांटिक गाने, मन को सुकून दे रही ठंडी हवा के झोंकों के बीच इंतजार था उस अद्भुत खगोलीय घटना का पूरे 18 साल बाद घटने जा रही थी-यानी सुपरमून का। ख्याल था देखें क्या खास होने वाला है- इस रात में। यूं तो चांद अपने पूरे शबाव पर था और दूसरे दिनों के मुकाबले अपनी चांदनी की चमक का पूरा नजारा करा रहा था। एकदम क्रिस्टल क्लियर। जैसे थ्री डी थियेटर में कोई हालीवुड की मूवी देख रहे हों, अवतार टाइप। पूरा मोहल्ला नींद की आगोश में लिपटा हुआ बच्चों की मानिंद गहरी नींद में सो रहा था। वक्त में सामने के मकान में कुछ हलचल हुई। मन में उत्सुकता जागी, इतनी रात में कौन जागा। नजरें सामने वाले घर में गईं, चारों ओर व्याप्त अंधेरे को चीरती हुई चांदनी की में एक मासूम चेहरा नजर आया। वो थी एक छोटी बच्ची। छोटी इसलिए क्योंकि उसकी उम्र यही कोई 15-16 के आसपास होगी। उसकी आंखों में नींद की खुमारी भरी थी, और आवाज में गुस्सा। वो अपने मोबाइल पर किसी से फुसफुसाती सी आवाज में बतिया रही थी। इतनी रात को फोन क्यों लगाया... मना किया है न। मम्मी जाग गईं तो वो पिटाई लगाएंगी कि समझ लेना। कुछ देर कि शांति... शायद सामने वाले ने कुछ बोला हो। फिर वही फुसफुसाहट तुम चाहते हो मेरी पिटाई हो। फिर शांति। नहीं चाहते तो। तो फिर फोन क्यों किया रात में। आगे से इतनी रात में मत करना। सामने वाले ने फिर कुछ बोला था शायद। लड़की ने इस बार अपेक्षाकृत तेज आवाज में कहा, रिश्ता आगे बढ़ाना चाहते हो तो कंट्रोल रखो खुद पर। शायद इस बार सामने वाले ने कुछ कहा हो, लड़की ने सिसकियां के साथ गुजारिश की समझा करो, मुश्किलें मेरी। मम्मी बोलती हैं, पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रही हो, आजकल ध्यान कहां है तुम्हारा। भाई भी नजर रखता है। सामने वाला थोड़ा पिघला हो शायद: क्योंकि आई लव यू.. के शब्द सुनाई पड़े। इसी के साथ गुडनाइट और लड़की घर के भीतर।हमने सोचा: बच्चों को अभी ये सब कितना अच्छा लग रहा है, मौसम सुहाना, दुनिया हसीन। सब कुछ गुलाब की तरह खिला- और मिट्टी की महक सा सोंधापन। पर इनकी कच्ची उम्र का प्यार कितने दिन इनके साथ रहने वाला है। रोटी कमाने के फेर में जिंदगी के दो पाटों के बीच प्यार -व्यार सब पिस जाएगा और रह जाएंगे सिर्फ संघर्ष। गला काट कॉम्पिटिशन के बीच आगे निकलने की जुगत। पर फिर मन में कहीं आवाज आई: हमेशा उल्टा क्यों सोचता है। जब तक प्यार की हवा के झोंकें इन्हें खुशी दे रहे हैं, खुश हो लेने दे। बाद की बाद में छोड़। मैंने भी कहा कल की कल पर छोड़ो, आज को भरपूर जियो।

Wednesday, March 23, 2011

दुआ कीजिये....धोनी का भाग्य फिर फिर चमके

होली तो बीत गई है, इसके रंग भी अब साथ छोडऩे की तैयारी में हैं। पर खास एक ऐसा रंग है, जिसके रंग में इन दिनों पूरा भारतीय उपमहाद्वीप रंगा हुआ है और वह रंग है क्रिकेट का। हार-जीत की अनिश्चितता और आखिरी गेंद तक रोमांच, सांसों को रोके रखने वाला गेंद और बल्ले का संग्राम अब आखिरी चरण की ओर बढ़ रहा है। नॉक आउट मुकाबले शुरू हो चुके हैं। जिससे पार पाना भारत के लिए भूसे में सुई ढूंढने जैसा दुरुह काम होगा। आपका मुकाबला किन खतरनाक दुश्मनों से होने वाला इसका नजारा पहले ही मुकाबले में हमारे पारंपरिक दुश्मन पाकिस्तान ने वेस्टइंडीज को 10 विकेट से करारी मात देकर दे दिया है। वहीं दूसरे मुकाबले में टीम इंडिया का वह दुश्मन होगा, जिसने 2003 के आखिरी क्षणों में आपकी आंखों सेविश्व कप जीतने का सपना काजल की तरह चुरा लिया था।ऐसी किसी भी शर्मनाक स्थिति से बचने के लिए हर टीम अपनी जान लड़ाने के लिए तैयार है। ऐसे में दुनिया की 50-50 फार्मेट वाले इस खेल की दुनिया के दूसरे पायदान पर काबिज भारतीय टीम की राहें निश्चित तौर पर आसान नहीं होनी हैं। राहें आसान करने के लिए दुआ कीजिये।

दूसरा कारण भी है जिससे आपकी दुआओं की जरूरत ज्यादा पडऩे वाली है।पिछले जितने भी लीग मुकाबले हुए हैं, उनमें हमारे धोनी के धुरंधरों का प्रदर्शन देखते हुए कहीं से भी नहीं लग रहा कि यह टीम वल्र्ड कप जीतने की असली हकदार है। बांग्लादेश के साथ उद्घाटन मैच को छोड़ कर कहीं से भी हमारे महारथियों की बॉडी लैंग्वेज (शारीरिक भाषा) से जीत की भूख नहीं झलकी। यकीन के लिए थोड़ा फ्लैश बैक में चलते हैं-
पहला: इंग्लैंड के साथ का लीग मैच याद कीजिये। भारत ने 339 रनों का सागरमाथा टाइप बड़ा लक्ष्य इंग्लिश टीम को दिया। पूरा देश बड़ी जीत की उम्मीद कर रहा था। पर हमारी लचर फील्डिंग और सुपर फास्ट और महान स्पिनरों की कमजोर गेंदबाजी ने ओवर दर ओवर इस खुशफहमी को कम करना शुरू कर दिया। आखिर में यूनियन जैक ने 338 का स्कोर कर मैच टाइ कर दिया।
दूसरा: या फिर द. अफ्रीका के साथ कैसे सचिन, सहवाग और गंभीर को छोड़कर बाकी 8 खिलाड़ी 29 रन के कुल स्कोर पर पैवेलियन लौट आये थे। तीसरा: आयरलैंड के साथ हुए लीग मैच में कैसे धोनी के महान सिपाही इतने दबाव में आ गये थे, कि उन्हें 204 का बच्चों जैसा टार्गेट भी 240 जैसा युवक जैसा लग रहा था।
चौथे: कुछ कारण ऐसे हैं, जिनके बारे में हम सिर्फ भगवान की दया और आपकी दुआ के सहारे ही पार पा सकते हैं। वो हैं, सहवाग चोटिल हैं, हरभजन विकेट निकालने में नाकाम हो रहे हैं, पठान के बल्ले की आग बर्फ की मानिंद ठंडी पड़ गई है, ऐसे अनके कारण है। ज्यादा विस्तार में न जाएं तो बेहतर है। सो यहां भी दुआओं की जरूरत है।
आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण कारण :अगर आप इन सभी कारणों से असहमत हैं, और दुआ नहीं करना चाहते तो एक ऐसा कारण प्रस्तुत है, जिससे 99.98 प्रतिशत लोग सहमत होंगे और टीम इंडिया की जीत की दुआ के लिए अपने हाथ उठा देंगे। और वह कारण है सचिन रमेश तेंदुलकर। जी हां यह वह आखिरी कारण है, जो पिछले 21 सालों से क्रिकेट की साधना में रत है और महंगाई, भ्रष्टाचार, सड़कों के गड्ढे, पानी की किलल्त, बिजली का रोना, फसल का निपटना, चीनी का महंगा होना, दाल का रुलाना, सब्जियों के कठिन सब्जबाग और 26/11 हमले के सदमे, सरकार की नाकामियों, नेताओं की बंदरबांट, जनता का पैसा अफसरों की जेब में, किसानों की खुदकुशियां जैसी, लाखों दुश्वारियों के बीच खुशी के चंद मौके तलाशते आम आदमी को अपने चौके-छक्कों की बरसात, विरोधी गेंदबाजों की धज्जियां उड़ाते अपने शतकों के शतक के करीब पहुंच कर मुस्कराने के मौके दिये हैं।
क्योंकि सचिन ने पूरे देश को एक ही रंग में रंग कर अनेकता में एकता की भावना को चरितार्थ कर दिया है।
तो अगर आप उस खुशी देने वाले इंसान को उसकी साधना, तपस्या, सेवा और लाखों खुशियों के दान का प्रसाद देना चाहते हैं, तो दुआ कीजिये कि उसका वह सपना पूरा हो जाए, जो उसने 10 साल की नादान उम्र में देखा: एक दिन मैं ये कप घर लेकर आउंगा। तो दुआ कीजिये कि किस्मत के धनी धोनी का भाग्य एक बार फिर जोर मारे ताकि अगर हमारे सारे महारथी मैदान पर फेल भी हो रहे हों, तो केवल अपने भाग्य के बल पर ही कई शानदार जीतें हासिल करने वाले धोनी इस बार एक ऐसी जीत हासिल करें, जिससे सचिन का संन्यास गर्व से भरा हो। क्योंकि अगर इस बार ऐसा न हुआ तो 36 साल के सचिन की बढ़ती उम्र उन्हें अपने सपने को पाने के लिए दौडऩे की इजाजत नहीं देने वाली। तो हाथ दुआ में उठाओ, धोनी की किस्मत चमके और पूरा हो एक सपना। मैं एक दिन यह कप घर लेकर आउंगा।

Monday, September 6, 2010

अहिंसा...अहिंसा जपत..जपत बनत जा रहे कायर

थोड़ा अजीब सी तुकबंदी है। पर इसे पढऩे के बाद आपको अर्थ समझ आ जाएगा। अच्छा पड़ोसी कौन? वही जो सुख में न सही, दुख में आपके साथ खड़ा रहे। चाहे आप उससे खुश रहो, चाहे उसको गाली दो या जूते मारो। अपने भारत देश की तरह। अब देखिये न कि हम कितने अच्छे पड़ोसी हैं, पड़ोसी मुल्कों पर जरा सी मुसीबत आई नहीं कि खड़े हो गये मदद का झंडा लेकर। यार मुसीबत में है अपना, मदद करनी चाहिए। हमने अपने हर पड़ोसी की हर बुरे वक्त में मदद की है, बिना किसी निजी स्वार्थ के।
नापाक पाकशुरुआत करते हैं अपने पहले और सबसे अहम पड़ोसी की। ठीक समझे पाकिस्तान। न केवल पड़ोसी है, बल्कि हमारे सियासतदां तो उसे अपना भाई तक बताते हैं। अब देखिये क्या है कि पिछले दो महीनों से बाढ़ से बेहाल है बेचारा। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ें कहते हैं कि 2000 के आस-पास लोग 80 साल में पहली बार आई इतनी भीषण बाढ़ में अकाल मौत का शिकार हुए हैं। तकरीबन 2 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं, 12 लाख घर तबाह हो गये हैं, 50 लाख लोग बेघर हो गये हैं और कुल उपजाऊ भूमि का 14 प्रतिशत हिस्सा (32 लाख हेक्टेयर) क्षतिग्रस्त हो गया है। कई वेबसाइटों पर पाक की त्रासदी की तस्वीरें देखीं हैं और तस्वीरें कभी झूठ नहीं बोलतीं। कम से कम इतनी भयानक त्रासदी की तो नहीं। ये तस्वीरें बहुत ह्दयविदारक भी हैं। ऐसे आड़े वक्त में पाकिस्तान की मदद करने से उसके खैरख्वाहों ने अपने कदम पीछे खींच लिये (उसकी हरकतों की वजह से)। चाहे बात अमेरिका की हो या चीन की हो या किसी दूसरे इस्लामिक मुल्क की। पर अपने भारत ने बखूबी उसका साथ दिया। मदद दी। पहले 50 लाख डालर (23 करोड़ रुपए) की मदद का ऐलान किया। पर पाकिस्तान ने इसे लेने में आनाकानी की। बाद में अमेरिका के दबाव में उसने इसके लिए हामी भर दी। पर इसके लिए भी पूरी बेशर्मी से शर्त ठोंक दी-संयुक्त राष्ट्र के रास्ते मदद दो तब स्वीकार करेंगे। इतनी हेठी भी ठीक थी। लेकिन वहां की मीडिया तो हुक्मरानों से ज्यादा बेशर्म निकला। ऐसे कठिन वक्त में जब अपने देश के हालातों को दुनिया के सामने मजबूती से रखना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मदद हासिल करते, उन्होंने फिजां में जहर घोला। भारत के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। कश्मीर के मुद्दों को तूल देकर भारत के खिलाफ साजिश रचता रहा। कहता रहा भारत जब तक कश्मीरियों को उनकी आजादी का हक नहीं देता,तब तक पाक को भारतीय मदद स्वीकार नहीं करना चाहिए। अब भारत तो ठहरा भारत-सब सह गया। मदद की पेशकश लगातार करता रहा। इतना ही नहीं हमारे देश ने मदद की रकम बढ़ा कर 2.50 करोड़ डालर कर दी। इतनी सह्दयता सेे तो कट्टर दुश्मन को भी शर्म आ जाए। लेकिन बेशर्म पाकिस्तान को देखिये बाढ़ का दोष भी भारत के माथे मढ़ दिया। कहा भारत ने पानी छोड़ा तभी बाढ़ आई। पाक मीडिया के एक अंग पाकनेशनलिस्ट्स.कॉम ने आरोप लगाते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर से होकर बहने वाली कई नदियां पाक के पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान से होकर गुजरती हैं और भारत ने इन नदियों पर कई बांध बना रखे हैं। बगलिहार बांध को जानबूझकर खोला गया, ताकि पाक में बाढ़ आ जाए। हिमालय पर बर्फ पिघलने से पाक के मैदानी इलाकों में आई बाढ़ का कोई मतलब नहीं है। वेबसाइट के मुताबिक अगर यह प्राकृतिक बाढ़ होती तो इसका असर भारत और अफगानिस्तान पर भी पड़ता। इसके अलावा पाक में पिछले कुछ दिनों में ज़्यादा बारिश नहीं हुई है, लेकिन नदियों का पानी बढ़ता जा रहा है। पाकनेशनलिस्ट्स.कॉम ने पाक के उत्तर-पश्चिम सूबे में सत्ता में मौजूद एएनपी पर भी भारत और अफगानिस्तान के साथ मिलकर पाक विरोधी काम करने का आरोप लगाया है। वेबसाइट ने तर्क दिया, एएनपी ने कालाबाग बांध के बनने का हमेशा विरोध करती रही है। अगर यह बांध बना होता तो पाकिस्तान में हजारों जि़ंदगियां बच सकती थीं। इस आरोप के बाद भी हमारी सरकार ने मदद का झंडा बुलंद किया हुआ है। ये नहीं कि लगाएंगे दो कान के नीचे। और बंद करें मदद। लेकिन नहीं साहब हम बड़े भाई का फर्ज निभाएंगे। हमने पूरी मदद दी, न केवल पैसे से बल्कि दूसरी राहत सामग्रियों से भी। फिर भी बेशर्म पाक नहीं शर्माया। उसने दूसरा आरोप जड़ा क्रिकेट के लिए। पाक के नापाक क्रिकेटर अपनी करतूतों की वजह से पूरे देश की थू-थू करवा रहे हैं, जब आईसीसी ने जांच में ये दोषी पाए गये, तो उसका ठीकरा भी भारत के सिर फूटा। कहा कि भारत ने हमारे खिलाड़ी तो निर्दोष हैं, सटोरिया तो भारतीय है। इसके पीछे भारत की साजिश है। बचारे शरद पवार को आईसीसी का अध्यक्ष बनना महंगा पड़ गया। इतने आरोप बाप रे बाप।
नामसमझ नेपाल: अपना दूसरा पड़ोसी- नेपाल। ज्यादा नहीं है बेचारे की औकात हमारे सामने। अभी जुमां-जुमां चार दिन हुए राजशाही से स्वतंत्रता हुए। लेनिक देखिये इनको आज तक लोकतंत्र के बाद भी स्थिर सरकार नहीं बन पा रहे। प्रचंड और माधव कुमार में से कौन इस पद पर बैठेगा का इसका निर्णय आज तक नहीं हो पा रहा है। छह बार सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री चुनने की कोशिश कर चुके हैं, पर सफल नहीं हो रहे। ये नाटक हुआ है 21, 23 जुलाई, 2, 6 और 23 अगस्त और हालिया छठवीं बार 5 सितंबर को। अब यह उनके देश की बात है। हमें क्या? पर ऐसा नहीं है जनाब। अब नेपाल बदल चुका है। वो हमारा प्यारा नेपाली भाई नहीं रहा। उसने भी भारत को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है। बानगी देखिये- 5 सितंबर को प्रधानमंत्री चुनाव के ठीक एक दिन पहले ही ऐसा कुछ हुआ है कि भारत को सचेत हो जाना चाहिए। दरअसल मीडिया में खबर आई कि चीन नेपाल के सांसदों की खरीद-फरोख्त की कोशिश कर रहा है। बोली लगी 50 सांसदों के लिए 50 करोड़ रुपए। यहां तक तो सबकुछ ठीक रहा। पर आगे जो कुछ हुआ-भारत के लिए वह अच्छा नहीं है।जी हां इसका दोष भी लगा है भारत के सिर पर। ये आरोप लगाया है नेपाली प्रधानमंत्री के चुनाव से ठीक पहले माओवादी नेताओं ने। यह पूरा मामला कुछ ऐसा है कि शनिवार को एक ऑडियो टेप अचानक सामने आया, जिसमें माओवादी सांसद कृष्ण बहादुर म्हारा के एक व्यक्ति के साथ टेलीफोन पर बातचीत में सामने आया कि एक चीनी दोस्त प्रधानमंत्री पद के चुनाव में माओवादी उम्मीदवार पुष्प कमल दहल प्रचंड का समर्थन करने के लिए तराई की जातीय पार्टियों के सांसदों को खरीदने के लिए 50 करोड़ नेपाली रुपए देने का इच्छुक है। अब माओवादियों ने भारत पर दोषारोपड़ करते हुए कहा- इस टेप के पीछे भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का हाथ है। यह बयान बकायदा नेपाली समाचार पत्र जनसंदेश (माओवादी मुखपत्र) में छपा है। इसमें कहा गया है कि रॉ ने फर्जी टेप बनाया और बांटा है। इस लेख में दावा किया गया है कि 5 सितंबर को होने वाले चुनावों में माओवादी पार्टी की जीत सुनिश्चित समझकर रॉ ने नेपाली मीडिया में टेप डाला और उसके प्रसारण के लिए दबाव डाला। इन गोरखाओं को शर्म नहीं आई ऐसे आरोप लगाते हुए-जबकि वहां स्थिरता लाने के लिए भारत ने सबसे ज्यादा प्रयास किये थे। 23 नवंबर 2005 को माओवदियों एवं सात संसदीय पार्टियों के बीच समझौते में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। और अब भी की जब बार-बार की कोशिशें बेनजीता साबित होती रही। भारत ने अपने विशेष दूत श्याम शरण को वहां भेज कर माओवादियों और अन्य पार्टियों के बीच समझौता करवाने की कोशिश की। हालांकि यहां भारत फेल हो गया। दरअसल नेपाल में सत्ता को लेकर वैचारिक मतभेद इतने हो गये हैं कि वहां स्थिरता नहीं आ पा रही। हालांकि यहां स्पष्ट है कि चीन नेपाल को मोहरा बना कर भारत को घेरने की तैयारी कर रहा है।
चालाक चीन: अब चीन के बारे में क्या कहें। वह तो हमेशा से मुंह में राम बगल में छुरी लिये घूमता रहता है कि कब मौका मिले और भारत की पीठ लहूलुहान की जाये। अभी हाल ही में उसने नया पांसा फेंका है-भारतीय सेना के एक जनरल को जो कि कश्मीर में पोस्टेड थे, चीन का जाने का वीजा नहीं दिया। इतना ही नहीं चीन काफी पहले से ही कश्मीरियों को स्टेप्लड वीजा देता रहता है, हालांकि भारत ने इस पर अपनी आपत्ति भी उठाई पर चीन तो चीन है। मर्द है कभी झुका नहीं। इसके पीछे तर्क यह है कि चीन कश्मीर को स्वतंत्र मानता है। यहां तक भी ठीक था पर अब वह पाक अधिकृत कश्मीर के एक भाग गिलगित और बाल्टिस्तान में लगातार अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ा रहा है। यहां पर उसके एयरबेस तैयार करने भी शुरू कर दिये और 11000 सैनिकों को तैनात कर दिया है। हालांकि भारत के आपत्ति उठाने पर उसने उन सैनिकों को राहतकर्मी बताया, जो पाकिस्तान की मदद के लिए काम कर रहे हैं।चीन हर संभव भारत के खिलाफ काम कर रहा है। अभी ताजा जानकारी यह है कि चीन अपनी समुद्री सीमा को और मजबूत बनाने के लिए 20 हजार किमी. तक मार करने में सक्षम मिसाइल डेवलप कर रहा है। इसके पीछे तर्क है अपनी समुद्री सीमा को सुरक्षित रखना। यहां सुरक्षा विशेषज्ञों भी मान रहे हैं कि भारत के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। उसे सावधान रहते हुए खुद को मजबूत बनाना होगा और चीन को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है इन हरकतों के पीछे चीन की मंशा दुनिया में बहुध्रुवीय बनने और बीजिंग की स्वीकार्यता बढ़ाने को लेकर है, इतना ही नहीं वह ताकत चाहता है, पूरे एशिया पर राज करना चाहता है। लेकिन बीच में रोड़ा है भारत। चीन चाहता है कि अमेरिका उसके आगे झुक जाए। इसकी शुरुआत हो चुकी है- सोमवार को तब जब अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थामस डोनिलोन और अमेरिकी राष्ट्रीय आर्थिक परिषद के अध्यक्ष लैरी समर्स के नेतृत्व में एक दल चीन पहुंचा और संबंधों को सुधारने के लिए कोशिशें शुरू कीं।
मुद्दे पर वापस आते हैं- अहिंसा...अहिंसा, जपत...जपत बनत जा रहे कायर। इस शीर्षक का जवाब अब शुरू होता है। फैसला आप करें ठीक है या नहीं-अब देखिये भारत के तीन ओर तीन पड़ोसी हैं। जो लगातार अपने खतरनाक मंसूबे को अंजाम देने में जुटे हुए हैं। पर जनता द्वारा चुनी गई, जनता की सरकार, जिसे सिर आंखों पर बैठाए हैं कैसा बर्ताव कर रही है। पाक की बार-बार की टें-टें चालू है, और हम मुंबई में मारे गये उन 200 लोगों को भूल कर फिर बात कर रहे है, मदद के लिए कर्ण बनने की तैयार बैठी है। उधर नेपाल भी शुरू हो चुका है डै्रगन का हाथ पीठ पर है, और हमारी सरकार है कि उसके कानों पर न तो जूं रेंग रही और न ही कुछ दिखाई दे रही। मोतियाबिंद हो गया है इनको। जबकि दुनिया की मानी हुई खुफिया एजेंसियां और खुद रॉ भी बार-बार चीन की बढ़ती ताकत और भारत के खिलाफ साजिश से अवगत करा रही हैं। पर हमारे माननीय विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री और स्वंय प्रधानमंत्री भी इन रिपोर्टों को नकारते रहते हैं। कब जागेंगे ये सब जब चीन 1962 की तरह एक बार फिर हिंदी-चीनी भाई-भाई करता पिछवाड़े पर लात मारेगा तब।हकीकत यह है कि चीन को छोड़कर कोई भी ऐसा पड़ोसी नहीं है, जो हमारे मुकाबले खड़ा हो सके। और न तो हम इतने कमजोर हैं कि हम इन टुच्चे देशों से दब जाएं। न इनकी इतनी औकात कि ये हम पर धौंस जमा सकें।लेकिन क्या है न कि बापू तो चले गये यह कह कर कि कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा आगे कर दो। वो भी मुस्कराकर। पर उनके नाम पर सत्ता पर काबिज उनके इन कपूतों को यह नहीं पता कि बापू ने तीसरे थप्पड़ सहने के लिए नहीं कहा था। उन्हें शायद याद नहीं कि तीसरा गाल नहीं होता, तीसरा पिछवाड़ा ही होता है, जहां थप्पड़ नहीं लात पड़ती है। पर बापू की अहिंसा के पाठ का जाप करते-करते ये सत्तालोलुप नुमाइंदे भूल गये कि अहिंसा भी उन्हीं की शोभा बढ़ाती है, जो ताकतवर है। कमजोर अहिंसा का जाप करे तो उसे कायर समझा जाता है। जनाब! ध्यान रखिये कहा गया है-अति सर्वत्र वर्जये। सो जरूरत से ज्यादा अहिंसा..अहिंसा का जरुरत से ज्यादा जाप कहीं कायरता की निशानी न बन जाए।

अहिंसा...अहिंसा जपत..जपत बनत जा रहे कायर

थोड़ा अजीब सी तुकबंदी है। पर इसे पढऩे के बाद आपको अर्थ समझ आ जाएगा। अच्छा पड़ोसी कौन? वही जो सुख में न सही, दुख में आपके साथ खड़ा रहे। चाहे आप उससे खुश रहो, चाहे उसको गाली दो या जूते मारो। अपने भारत देश की तरह। अब देखिये न कि हम कितने अच्छे पड़ोसी हैं, पड़ोसी मुल्कों पर जरा सी मुसीबत आई नहीं कि खड़े हो गये मदद का झंडा लेकर। यार मुसीबत में है अपना, मदद करनी चाहिए। हमने अपने हर पड़ोसी की हर बुरे वक्त में मदद की है, बिना किसी निजी स्वार्थ के।
नापाक पाक
शुरुआत करते हैं अपने पहले और सबसे अहम पड़ोसी की। ठीक समझे पाकिस्तान। न केवल पड़ोसी है, बल्कि हमारे सियासतदां तो उसे अपना भाई तक बताते हैं। अब देखिये क्या है कि पिछले दो महीनों से बाढ़ से बेहाल है बेचारा। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ें कहते हैं कि 2000 के आस-पास लोग 80 साल में पहली बार आई इतनी भीषण बाढ़ में अकाल मौत का शिकार हुए हैं। तकरीबन 2 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं, 12 लाख घर तबाह हो गये हैं, 50 लाख लोग बेघर हो गये हैं और कुल उपजाऊ भूमि का 14 प्रतिशत हिस्सा (32 लाख हेक्टेयर) क्षतिग्रस्त हो गया है। कई वेबसाइटों पर पाक की त्रासदी की तस्वीरें देखीं हैं और तस्वीरें कभी झूठ नहीं बोलतीं। कम से कम इतनी भयानक त्रासदी की तो नहीं। ये तस्वीरें बहुत ह्दयविदारक भी हैं। ऐसे आड़े वक्त में पाकिस्तान की मदद करने से उसके खैरख्वाहों ने अपने कदम पीछे खींच लिये (उसकी हरकतों की वजह से)। चाहे बात अमेरिका की हो या चीन की हो या किसी दूसरे इस्लामिक मुल्क की। पर अपने भारत ने बखूबी उसका साथ दिया। मदद दी। पहले 50 लाख डालर (23 करोड़ रुपए) की मदद का ऐलान किया। पर पाकिस्तान ने इसे लेने में आनाकानी की। बाद में अमेरिका के दबाव में उसने इसके लिए हामी भर दी। पर इसके लिए भी पूरी बेशर्मी से शर्त ठोंक दी-संयुक्त राष्ट्र के रास्ते मदद दो तब स्वीकार करेंगे। इतनी हेठी भी ठीक थी। लेकिन वहां की मीडिया तो हुक्मरानों से ज्यादा बेशर्म निकला। ऐसे कठिन वक्त में जब अपने देश के हालातों को दुनिया के सामने मजबूती से रखना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मदद हासिल करते, उन्होंने फिजां में जहर घोला। भारत के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया। कश्मीर के मुद्दों को तूल देकर भारत के खिलाफ साजिश रचता रहा। कहता रहा भारत जब तक कश्मीरियों को उनकी आजादी का हक नहीं देता,तब तक पाक को भारतीय मदद स्वीकार नहीं करना चाहिए। अब भारत तो ठहरा भारत-सब सह गया। मदद की पेशकश लगातार करता रहा। इतना ही नहीं हमारे देश ने मदद की रकम बढ़ा कर 2.50 करोड़ डालर कर दी। इतनी सह्दयता सेे तो कट्टर दुश्मन को भी शर्म आ जाए। लेकिन बेशर्म पाकिस्तान को देखिये बाढ़ का दोष भी भारत के माथे मढ़ दिया। कहा भारत ने पानी छोड़ा तभी बाढ़ आई। पाक मीडिया के एक अंग पाकनेशनलिस्ट्स.कॉम ने आरोप लगाते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर से होकर बहने वाली कई नदियां पाक के पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान से होकर गुजरती हैं और भारत ने इन नदियों पर कई बांध बना रखे हैं। बगलिहार बांध को जानबूझकर खोला गया, ताकि पाक में बाढ़ आ जाए। हिमालय पर बर्फ पिघलने से पाक के मैदानी इलाकों में आई बाढ़ का कोई मतलब नहीं है। वेबसाइट के मुताबिक अगर यह प्राकृतिक बाढ़ होती तो इसका असर भारत और अफगानिस्तान पर भी पड़ता। इसके अलावा पाक में पिछले कुछ दिनों में ज़्यादा बारिश नहीं हुई है, लेकिन नदियों का पानी बढ़ता जा रहा है। पाकनेशनलिस्ट्स.कॉम ने पाक के उत्तर-पश्चिम सूबे में सत्ता में मौजूद एएनपी पर भी भारत और अफगानिस्तान के साथ मिलकर पाक विरोधी काम करने का आरोप लगाया है। वेबसाइट ने तर्क दिया, एएनपी ने कालाबाग बांध के बनने का हमेशा विरोध करती रही है। अगर यह बांध बना होता तो पाकिस्तान में हजारों जि़ंदगियां बच सकती थीं।
इस आरोप के बाद
भी हमारी सरकार ने मदद का झंडा बुलंद किया हुआ है। ये नहीं कि लगाएंगे दो कान के नीचे। और बंद करें मदद। लेकिन नहीं साहब हम बड़े भाई का फर्ज निभाएंगे। हमने पूरी मदद दी, न केवल पैसे से बल्कि दूसरी राहत सामग्रियों से भी। फिर भी बेशर्म पाक नहीं शर्माया। उसने दूसरा आरोप जड़ा क्रिकेट के लिए। पाक के नापाक क्रिकेटर अपनी करतूतों की वजह से पूरे देश की थू-थू करवा रहे हैं, जब आईसीसी ने जांच में ये दोषी पाए गये, तो उसका ठीकरा भी भारत के सिर फूटा। कहा कि भारत ने हमारे खिलाड़ी तो निर्दोष हैं, सटोरिया तो भारतीय है। इसके पीछे भारत की साजिश है। बचारे शरद पवार को आईसीसी का अध्यक्ष बनना महंगा पड़ गया। इतने आरोप बाप रे बाप।
नामसमझ नेपाल:
अपना दूसरा पड़ोसी- नेपाल। ज्यादा नहीं है बेचारे की औकात हमारे सामने। अभी जुमां-जुमां चार दिन हुए राजशाही से स्वतंत्रता हुए। लेनिक देखिये इनको आज तक लोकतंत्र के बाद भी स्थिर सरकार नहीं बन पा रहे। प्रचंड और माधव कुमार में से कौन इस पद पर बैठेगा का इसका निर्णय आज तक नहीं हो पा रहा है। छह बार सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री चुनने की कोशिश कर चुके हैं, पर सफल नहीं हो रहे। ये नाटक हुआ है 21, 23 जुलाई, 2, 6 और 23 अगस्त और हालिया छठवीं बार 5 सितंबर को। अब यह उनके देश की बात है। हमें क्या?
पर ऐसा नहीं है जनाब। अब नेपाल बदल चुका है। वो हमारा प्यारा नेपाली भाई नहीं रहा। उसने भी भारत को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है।
बानगी देखिये- 5 सितंबर को प्रधानमंत्री चुनाव के ठीक एक दिन पहले ही ऐसा कुछ हुआ है कि भारत को सचेत हो जाना चाहिए। दरअसल मीडिया में खबर आई कि चीन नेपाल के सांसदों की खरीद-फरोख्त की कोशिश कर रहा है। बोली लगी 50 सांसदों के लिए 50 करोड़ रुपए। यहां तक तो सबकुछ ठीक रहा। पर आगे जो कुछ हुआ-भारत के लिए वह अच्छा नहीं है।
जी हां इसका दोष भी लगा है भारत के सिर पर।
ये आरोप लगाया है नेपाली प्रधानमंत्री के चुनाव से ठीक पहले माओवादी नेताओं ने। यह पूरा मामला कुछ ऐसा है कि शनिवार को एक ऑडियो टेप अचानक सामने आया, जिसमें माओवादी सांसद कृष्ण बहादुर म्हारा के एक व्यक्ति के साथ टेलीफोन पर बातचीत में सामने आया कि एक चीनी दोस्त प्रधानमंत्री पद के चुनाव में माओवादी उम्मीदवार पुष्प कमल दहल प्रचंड का समर्थन करने के लिए तराई की जातीय पार्टियों के सांसदों को खरीदने के लिए 50 करोड़ नेपाली रुपए देने का इच्छुक है। अब माओवादियों ने भारत पर दोषारोपड़ करते हुए कहा- इस टेप के पीछे भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का हाथ है। यह बयान बकायदा नेपाली समाचार पत्र जनसंदेश (माओवादी मुखपत्र) में छपा है। इसमें कहा गया है कि रॉ ने फर्जी टेप बनाया और बांटा है। इस लेख में दावा किया गया है कि 5 सितंबर को होने वाले चुनावों में माओवादी पार्टी की जीत सुनिश्चित समझकर रॉ ने नेपाली मीडिया में टेप डाला और उसके प्रसारण के लिए दबाव डाला। इन गोरखाओं को शर्म नहीं आई ऐसे आरोप लगाते हुए-जबकि वहां स्थिरता लाने के लिए भारत ने सबसे ज्यादा प्रयास किये थे। 23 नवंबर 2005 को माओवदियों एवं सात संसदीय पार्टियों के बीच समझौते में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। और अब भी की जब बार-बार की कोशिशें बेनजीता साबित होती रही। भारत ने अपने विशेष दूत श्याम शरण को वहां भेज कर माओवादियों और अन्य पार्टियों के बीच समझौता करवाने की कोशिश की। हालांकि यहां भारत फेल हो गया। दरअसल नेपाल में सत्ता को लेकर वैचारिक मतभेद इतने हो गये हैं कि वहां स्थिरता नहीं आ पा रही। हालांकि यहां स्पष्ट है कि चीन नेपाल को मोहरा बना कर भारत को घेरने की तैयारी कर रहा है।
चालाक चीन: अब चीन के बारे में क्या कहें। वह तो हमेशा से मुंह में राम बगल में छुरी लिये घूमता रहता है कि कब मौका मिले और भारत की पीठ लहूलुहान की जाये। अभी हाल ही में उसने नया पांसा फेंका है-भारतीय सेना के एक जनरल को जो कि कश्मीर में पोस्टेड थे, चीन का जाने का वीजा नहीं दिया। इतना ही नहीं चीन काफी पहले से ही कश्मीरियों को स्टेप्लड वीजा देता रहता है, हालांकि भारत ने इस पर अपनी आपत्ति भी उठाई पर चीन तो चीन है। मर्द है कभी झुका नहीं। इसके पीछे तर्क यह है कि चीन कश्मीर को स्वतंत्र मानता है। यहां तक भी ठीक था पर अब वह पाक अधिकृत कश्मीर के एक भाग गिलगित और बाल्टिस्तान में लगातार अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ा रहा है। यहां पर उसके एयरबेस तैयार करने भी शुरू कर दिये और 11000 सैनिकों को तैनात कर दिया है। हालांकि भारत के आपत्ति उठाने पर उसने उन सैनिकों को राहतकर्मी बताया, जो पाकिस्तान की मदद के लिए काम कर रहे हैं।
चीन हर संभव भारत के खिलाफ काम कर रहा है। अभी ताजा जानकारी यह है कि चीन अपनी समुद्री सीमा को और मजबूत बनाने के लिए 20 हजार किमी. तक मार करने में सक्षम मिसाइल डेवलप कर रहा है। इसके पीछे तर्क है अपनी समुद्री सीमा को सुरक्षित रखना।
यहां सुरक्षा विशेषज्ञों भी मान रहे हैं कि भारत के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है। उसे सावधान रहते हुए खुद को मजबूत बनाना होगा और चीन को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है इन हरकतों के पीछे चीन की मंशा दुनिया में बहुध्रुवीय बनने और बीजिंग की स्वीकार्यता बढ़ाने को लेकर है, इतना ही नहीं वह ताकत चाहता है, पूरे एशिया पर राज करना चाहता है। लेकिन बीच में रोड़ा है भारत। चीन चाहता है कि अमेरिका उसके आगे झुक जाए। इसकी शुरुआत हो चुकी है- सोमवार को तब जब अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थामस डोनिलोन और अमेरिकी राष्ट्रीय आर्थिक परिषद के अध्यक्ष लैरी समर्स के नेतृत्व में एक दल चीन पहुंचा और संबंधों को सुधारने के लिए कोशिशें शुरू कीं।
मुद्दे पर वापस आते हैं-
अहिंसा...अहिंसा, जपत...जपत बनत जा रहे कायर। इस शीर्षक का जवाब अब शुरू होता है। फैसला आप करें ठीक है या नहीं-
अब देखिये भारत के तीन ओर तीन पड़ोसी हैं। जो लगातार अपने खतरनाक मंसूबे को अंजाम देने में जुटे हुए हैं। पर जनता द्वारा चुनी गई, जनता की सरकार, जिसे सिर आंखों पर बैठाए हैं कैसा बर्ताव कर रही है। पाक की बार-बार की टें-टें चालू है, और हम मुंबई में मारे गये उन 200 लोगों को भूल कर फिर बात कर रहे है, मदद के लिए कर्ण बनने की तैयार बैठी है। उधर नेपाल भी शुरू हो चुका है डै्रगन का हाथ पीठ पर है, और हमारी सरकार है कि उसके कानों पर न तो जूं रेंग रही और न ही कुछ दिखाई दे रही। मोतियाबिंद हो गया है इनको। जबकि दुनिया की मानी हुई खुफिया एजेंसियां और खुद रॉ भी बार-बार चीन की बढ़ती ताकत और भारत के खिलाफ साजिश से अवगत करा रही हैं। पर हमारे माननीय विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, गृहमंत्री और स्वंय प्रधानमंत्री भी इन रिपोर्टों को नकारते रहते हैं। कब जागेंगे ये सब जब चीन 1962 की तरह एक बार फिर हिंदी-चीनी भाई-भाई करता पिछवाड़े पर लात मारेगा तब।
हकीकत यह है कि चीन को छोड़कर कोई भी ऐसा पड़ोसी नहीं है, जो हमारे मुकाबले खड़ा हो सके। और न तो हम इतने कमजोर हैं कि हम इन टुच्चे देशों से दब जाएं। न इनकी इतनी औकात कि ये हम पर धौंस जमा सकें।
लेकिन क्या है न कि बापू तो चले गये यह कह कर कि कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा आगे कर दो। वो भी मुस्कराकर। पर उनके नाम पर सत्ता पर काबिज उनके इन कपूतों को यह नहीं पता कि बापू ने तीसरे थप्पड़ सहने के लिए नहीं कहा था। उन्हें शायद याद नहीं कि तीसरा गाल नहीं होता, तीसरा पिछवाड़ा ही होता है, जहां थप्पड़ नहीं लात पड़ती है। पर बापू की अहिंसा के पाठ का जाप करते-करते ये सत्तालोलुप नुमाइंदे भूल गये कि अहिंसा भी उन्हीं की शोभा बढ़ाती है, जो ताकतवर है। कमजोर अहिंसा का जाप करे तो उसे कायर समझा जाता है। जनाब! ध्यान रखिये कहा गया है-अति सर्वत्र वर्जये। सो जरूरत से ज्यादा अहिंसा..अहिंसा का जरुरत से ज्यादा जाप कहीं कायरता की निशानी न बन जाए।

Wednesday, July 14, 2010

क्या हममें है दम.....

चलो यारों वल्र्ड कप खतम हुआ और अब हमें भी आराम मिला। क्यों पूछा क्या? अरे भाई रात 7.30 से रात के 2.00 बजे जाग-जाग कर फुटबाल देखना और टेंशन में नाखून चबाने से कितनी थकान होती है आप को पता है? खैर इस बार तो शकीरा के मस्त वाका...वाका पर लगाये गये ठुमकों और पॉल बाबा की भविष्यवाणी के सहारे स्पेन नया विश्व विजेता बन गया। उसको तो मिल गई 5.30 किलो की 18 कैरेट सोने की ट्राफी और अरबों के नोट। पर अपन को क्या मिला। खैर छोड़ा। हां एक बात और कुछ डे ड्रीमर (दिन में सपने देखने वाले) सपने देखने लगे हैं कि भाई हिंंदुस्तान को भी फीफा-वीफा के वल्र्ड कप करवाने चाहिए। इसके पीछे तर्क ये दे रहे हैं कि भाई जब अफ्रीका जैसा छोटा सा देश वल्र्ड कप करवा सकता है तो हिंदुस्तान जैसा विशाल देश क्यों नहीं। ये डे ड्रीमर इसके पीछे बड़े ही जानदार तर्क देकर आपको मानने पर मजबूर कर सकते हैं कि हां हमारे प्यारे हिंदुस्तान में भी ओलंपिक और फीफा जैसे बड़े खेल महाकुंभों का आयोजन होने चाहिए। इनके तर्कों की बानगी की कुछ मिसालें देखिये.1-हमारे शहर अफ्रीका के शहरों से ज्यादा अच्छे हैं।2.हमारे यहां की जनसंख्यया दुनिया में नंबर दो पर है और हम एक विशाल देश हैं।3.हमारी इकोनॉमी ग्रोथ 6.5 है और जल्द ही डबल डिजिट में पहुंचने वाली है, अर्थात हम 10 के आंकड़े को छू लेंगे।
4. 2020 तक भारत सभी विकासशील देशों को पीछे छोड़ते हुए विकसित देशों की कतार में खड़ा हो जाएगा।
5.हमारे यहां प्रतिव्यक्ति आय लगातार बढ़ रही है और अब यह दोगुनी तक जा पहुंची है।
6.हमारे यहां हर अरबपतियों-करोड़पतियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
7. कई भारतीय कंपनियों फाच्र्युन की सूची में शामिल होती जा रही हैं।
8.उनके यहां रंगभेद है/था हमारे यहां नहीं है।
9. अफ्रीका की 40 फीसदी से ज्यादा आबादी एड्स/एचआईवी से जूझ रही है।ऐसे बहुत सारे तर्क यह प्रस्तुत कर सकते है। लेकिन जहां तक सारी चीजों पर गौर करने की बात है तो मेरा यही मानना है कि फिलहाल तो हिंदुस्तान में कुव्वत नहीं है कि वह इतने बड़े-बड़े खेल महाकुंभों का आयोजना करवा सके। अब देखिये कुछ इन कारणों को जिनके आधार पर मुझे लगता है कि हमारा देश ऐसे बड़े आयोजन करवाने में अक्षम है-
1. राजनीतिक खींचतान- जी हां आप सभी जानते होंगे कि अक्टूबर में दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स होने हैं, इसकी तैयारी बड़े जोर-शोर से हो रही है। लेकिन इन खेलों के आयोजन को लेकर सत्ता दल और विपक्षी दल के नेता आपत्ति उठा रहे हैं। पहले हैं मणिशंकर अय्यर जी- जो कांगे्रस के वरिष्ठ नेता हैं- इनका कहना है कि कॉमन वेल्थ खेलों का आयोजन पैसों और वक्त की बरबादी के सिवा कुछ नहीं है। वहीं सदन में विपक्ष की भूमिका निभाने वाले जद यू के अध्यक्ष शरद यादव का भी कुछ ऐसा ही मानना है। इन दोनों का तर्क है कि बेहतर होता कि इनकी तैयारी पर खर्च हो रहे पैसों का उपयोग आम आदमी के सुविधाएं बढ़ाने में किया जाता। बहुत बढिय़ा। सही सोच है।
2. हमारे यहां राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन का शुरुआती बजट मात्र 3000 करोड़ रुपए रखा गया था, जो बढ़कर अब 80 हजार करोड़ तक जा पहुंचा है। पैसों की इतनी बर्बादी क्यों हो रही है। शायद किसी से छुपा नहीं होगा।
3. फीफा के मैच जोहानिसबर्ग, पीट्सबर्ग समेत कई अन्य शहरों में हुए हैं। जबकि कॉमनवेल्थ के आयोजन केवल दिल्ली में ही होने हैं। जहां की तैयारी अब तक पूरी नहीं हो पाई है।
4. अफ्रीका के स्टेडियम महीनों पहले ही तैयार हो गये थे, जबकि हमारे यहां 80 दिन बाकी होने पर भी हम यह दावा नहीं कर सकते कि हमारे स्टेडियमों समेत अन्य सुविधाओं का 80 फीसदी काम भी पूरा हो पाया हो।
5. दिल्ली सरकार ने पहले स्टेडियमों की तैयारी, खेल गांव, दिल्ली के सौंदर्यीकरण समेत सभी निमार्णाधीन कामों को पूरा करने की समयसीमा रखी थी 30 जून 10 तक, लेकिन अब मुख्यमंत्री का कहना है कि सब काम पूरे होने में 31 अगस्त तक का समय लगेगा। बहुत बढिय़ा।
6. जरा दिल्ली जाकर देखिये- कि वहां की कॉमनवेल्थ के नाम पर आम आदमी को हर रोज कैसे नारकीय अनुभवों से गुजरना पड़ता है। जगह-जगह सड़कें खुदी हैं, डिवाइडर तोड़ डाले गये हैं, पूरे कनॉट प्लेस को सौंदर्यीकरण के नाम पर खोद डाला गया है और चारों ओर मलबा ही मलबा। अब बताइये मात्र एक खेल आयोजन, (जिसमें लगभग 60 देशों को भाग लेना है) सरकार के सिर से पांव तक पसीना बह रहा है तो ओलंपिक और फीफा जैसे आयोजनों में तो न जाने क्या होगा।
7. अफ्रीका की आर्थिक स्थिति से अपनी तुलना करने से पहले-यूएनडीपी की ह्यूमन डिवेलपमेंट की हालिया रिपोर्ट पर नजर डालना जरूरी है-जिसमें कहा गया है कि भारत के 8 राज्य अफ्रीका के 26 देशों से ज्यादा गरीब हैं। अपने देश में गरीबों की संख्या 42 करोड़ है, जो अफ्रीकी देशों के गरीबों से एक करोड़ ज्यादा है। इन राज्यों में मप्र, बिहार, झारखंड, प. बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा शामिल हैं। यूएनडीपी के अनुसार गरीब का मतलब 1 डालर प्रतिदिन से कम कमाने वाले लोग हैं। अब करो तुलना अफ्रीका और हिंदुस्तान में।
7. अब जरा आप याद कीजिये कि अपने यहां क्रिकेट के अलावा कौन सा ऐसा खेल है, जिसे भरपूर समर्थन मिलता हो। अभिनव बिंद्रा, विजेंद्र सिंह, राठौर, कर्णम मलेश्वरी और लिएंडर पेस समेत जितने भी ओलंपिक पदक विजेता हैं- उन्होंने जो कुछ भी हासिल किया, सिर्फ अपने दम-खम पर। सरकार की ओर से इन्हें ज्यादा सहारा न मिला।
8. कुछ महीनों पहले की बात है-जब हमारी राष्ट्रीय हॉकी टीम ने वल्र्ड कप से पहले ही टे्रनिंग कैंप में जाने से यह कहकर इंकार कर दिया था, पहले हमारे पुराने मैचों का भुगतान किया जाए, फिर हम आगे पै्रक्टिस करेंगे। तो यह हाल है हमारे राष्ट्रीय खेल के खिलाडिय़ों का, कि उनके पैसों का भुगतान सालों तक नहीं किया जाता। कैसे बढ़ेगी हॉकी आगे?
9. हमारे खेल संघों की तरफ नजर घुमाइये- आपको दिखेंगे राजनेता, बिजनेसमैन और समाजसेवक टाइप लोग। लेकिन आपको खिलाड़ी नहीं दिखेंगे। इतना भी होता तो भला था, लेकिन यहां तो ये महानुभाव लगातार खेल संघों की कुर्सी से ऐसे जम जाते हैं, जैसे कुर्सी में फेवीकोल का जोड़ लगा हो।जब हॉकी का विवाद उठा था, खेल मंत्री केपीएस गिल ने कहा था कि खेल संघों में जमे नेताओं और खेल से संबंध न रखने वाले लोगों को बाहर का रास्ता दिखाएंगे। इतना ही नहीं उन्होंने हर पांच साल में खेल संघों के पदाधिकारियों का चुनाव कराने का निर्णय लिया था? क्या हुआ उसका पता नहीं।
10. अफ्रीका में फीफा के आयोजन से पूर्व इसमें सहभागी एक प्रमुख कार निर्माता कंपनी फॉक्स वैगन(वोल्स वैगन) ने लोगों को जागरुक करने के लिए कई सामाजिक कार्य किये। इन सामाजिक कार्यों के तहत करोड़ों डॉलर का निवेश किया इस प्रमुख कंपनी ने। अपने देश में बताइये ऐसी कितनी कंपनियां हैं, जो सामाजिक काम के तौर पर लोगों को जागरुक करती हैं।
खैर यह तो कुछ बानगी मात्र हैं। पर हकीकत यह है कि हमारे खेलों के लिए मानसिकता ही नहीं है। क्योंकि अपने यहां हमेशा से माना जाता रहा है कि खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे खराब और पढ़ोगे-लिखोगे तो होगे नवाब। हालांकि क्रिकेट के लिए हमारे देश में अब मां-बाप की मानसिकता बन चुकी है, अब वो बच्चे को सचिन, धोनी या हरभजन बनाना चाहते हैं, लेकिन पीटी ऊषा, मिल्खा सिंह या वाइचुंग भूटिया जैसे एथलीट या फुटबालर नहीं। क्योंकि क्रिकेट में ग्लैमर है, पैसा है, नाम है।
अब तक जो हुआ वो हुआ। लेकिन अब वक्त आ गया है कि हम पिछले साल ओलंपिक का आयोजन करा कर दुनिया को दांतों तले अंगुलियां दबवा देने वाले चीन और हाल ही में फीफा का सफल आयोजन करवा कर अपनी नई पहचान बनाने वाले अफ्रीका से कुछ सीखने का।
अब जरुरत है-
1. सबसे पहले खेल संघों के महत्वपूर्ण पदों पर वर्षों से अवैध कब्जा जमाये हुए नेताओं, बिजनसेमैनों समेत सभी ऐसे लोगों को जिनको खेलों का ख भी नहीं पता।
2.अपनी खेल नीतियों को नये सिरे से परिभाषित करें और खेल संघों की कमान पूर्व खिलाडिय़ों को दी जाए। खेल संघों को धन की कमी न पडऩे दें।
3. बच्चों को केवल सचिन या हरभजन बनने के सपने न दिखाएं, बल्कि उन्हें पीटी ऊषा या साइना नेहवाल और धनराज पिल्लई जैसा बनने को प्रेरित करें। 4. खेल इंफ्रास्ट्रक्चर को डेवलप किया जाए, नए स्टेडियम बनाए जाएं। छोटे स्टेडियम कम से कम हर शहरों में हो। जहां स्थानीय खिलाड़ी पूरा अभ्यास कर सकें।
5. योग्य कोचों, और प्रशिक्षण सामग्रियों की व्यवस्था करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही इन कोचों को भरपूर सुविधाएं मिलें- ताकि ये पूरी लगन से नई प्रतिभाओं को निखार सकें।
6. इन प्रशिक्षकों के साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले विशेषज्ञ रखने भी जरूरी हैं, ताकि वह प्रशिक्षण के दौरान नये विचारों और टेक्निक्स को समझा कर प्रतिभाओं को हर स्तर पर निखारने में मदद दे सकें।
7. देश के हर जिले या संभाग में एक ऐसी गवर्निंग बॉडी हो, जो ईमानदारी से स्थानीय खेल संघों पर नजर रखे तथा जहां गलती हो उसे तुरंत दुरुस्त कर सके।
हालांकि ऊपर सुझाये हुए उपाय हर आम ओ खास जानता है। चाहे वो सत्ता में बैठे हुए जिम्मेदार लोग हों या दिनभर रोजी-रोटी के कमाने के लिए जद्दोजहद करता आम आदमी। लेकिन एक बात याद दिलाना जरुरी है- नई सदी में भारत जब हम भारतीय हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रहे, तो उसे खेलों की दुनिया में भी सिरमौर बनना ही होगा। यह समझना होगा कि ऐसे आयोजनों से दुनिया देखती है कि आपने कितनी आर्थिक तरक्की की है और उस पैसे को अपने यहां कैसे उपयोग किया है। इसलिए जरूरत है हौसले और ईमानदारी से प्रयास की ताकि हम खेलों में भी भारत का डंका बजवा सकें। क्योंकि ऐसे बड़े आयोजनों से ही दुनिया में आपकी छवि एक मजबूत राष्ट्र के तौर पर उभरती है। अफ्रीका भले चाहे कितना भी गरीब मुल्क हो, भले चाहे वहां की इकोनॉमी ग्रोथ कम हो,भले चाहे वहां 40 फीसदी आबादी एड्स जैसी गंभीर बिमारी से जूझ रही हो, लेकिन फीफा वल्र्ड कप 2010 का आयोजन सफलतापूर्वक पूरा करने से दुनिया में उसकी वाहवाही हो रही है और अब उसके प्रति दुनिया की राजनीतिक व औद्योगिक सोच में बदलाव आने लगा है। वहां निवेश करने के लिए इनवेस्टर्स की रूचि तेजी से बढऩे लगी है। ऐसा ही कुछ उस वक्त हुआ था, जब चीन ने ओलंपिक का सफल आयोजन किया। चीन के बारे में लोगों की सोच बदली और इससे दुनिया को दिखा चीन का वह मजबूत रूप जिसने दुनिया के सामने इस मत को और मजबूती दी, कि चीन नई आर्थिक शक्ति बन कर उभर रहा है। सो अब इंतजार खत्म करें और जुट जाएं जब तक दुनिया को अपनी ताकत न दिखा दें, और कह दें हां हममे हैं दम। क्योंकि अब वक्त हमारा है।

Monday, July 12, 2010

झुकती है दुनिया...

एक गाना याद आ रहा है... तुन्ना ...तुन्ना... ता... ता... तुन्ना झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए.....। संजय दत्त और शत्रुघन सिन्हा के अभिनय से सजी फिल्म थी अधर्म। जिसमें संजय पर यह गाना फिल्माया गया था। अब जाकर समझ आ रहा है कि इन लाइनों में कितनी सच्चाई है और अब आप जिस विषय पर यह ब्लाग पढ़ेंगे उस पर कितनी सटीक बैठती हैं। मुंबई का बेताज बादशाह कौन? जानते ही होंगे बाला साहेब ठाकरे। और अपने चचा से बादशाहत छीनने के जोड़ तोड में लगे हुए शहजादे राज ठाकरे। तो भाईयो एवं बहनो। झुकती है दुनिया इन दोनों के कदमों में। कैसे? बताते हैं... देखिये बड़े ठाकरे साहब ने राजनीति में कमजोर पड़ती अपनी पकड़ के बाद एक बार फिर मराठी के हितैषी बनने में जुट गये। सो अपने ताजा फैसले के बाद के बाद उन्होंने ऐलान किया सभी निजी रेडियो चैनल बजायें मराठी गाने नहीं तो.....हम तुम्हारी बैंड बजा देंगे। अपने इस फैसले को दम देते हुए उन्होंने कहा कि आजकल देखने में आ रहा है कि निजी एफएम चैनल मराठी गाने नहीं बजा रहे हैं, ऐसा नहीं चलेगा। ठाकरे बाबा ने ऐलान किया एक हफ्ते के अंदर अगर मराठी गाने बजाना शुरू नहीं किया तो ... हमारे शेरों की सेना उनके खिलाफ आंदोलन शुरू कर देगी। ठाकरे बाबा के इस ऐलान के बाद कुछ खास तो न हुआ सिवाय इसके कि उनके भतीजे चेते... यह क्या बाबा तो मराठियों को अपनी साइड करने में जुट गये हैं। अब भला राज बाबू कैसे चुप रहते उन्होंने भी ऐलान किया कि हां.. हां मराठी गाने बजाओ नहीं तो खैर नहीं। यहां यह भी बता दें कि अभी तक बड़े ठाकरे और छोटे ठाकरे के बीच गद्दी को लेकर अलगाव हो गया था, लेकिन अंबानी ब्रदर्स के एक होने के बाद उनके खैरख्वाह भी राज और उद्धव ठाकरे के बीच समझौते के प्रयास में जुट गये थे। सो अब निजी एफएम चैनलों पर पड़ी दोहरी चोट... इधर कुआं, तो उधर खाई जाएं तो जाएं कहां। आखिर मायानगरी में ही तो उनकी दुकान सबसे ज्यादा चलती है। यहीं तो पूरा फिलिम इंडस्ट्री बसती है, यहां से गये तो रोटी के लाले पड़ जाएंगे। सो उन्होंने आपस में की काफी माथाफोड़ी कि क्या करें... कुछ ने कहा भाई बूढ़ा शेर है। उसकी ज्यादा चिंता मत करो। अब तक न की वरना शनिवार को ही उसके ऐलान के बाद ही मराठी प्रेम दिखाते और मराठी गाने बजाते। लेकिन तभी एफएम चैनलों की टीम में से किसी ने कहा भाई शेर की परवाह नहीं। लेकिन ये जो उनका छौना है... मनसे वाला वह भी खड़ा है शेर के साथ। शेर कुछ न करेगा, लेकिन छौने में दम है...देख चुके हैं कैसे यूपी-बिहार के भईय्याओं को भगाया था मार-मार कर। पूरे देश ने देखा था मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई शहरों में उनका तांडव। उसकी बात न मानी तो हमें भी बोरिया-बिस्तर बांध कर जाना पड़ सकता है। सो सहमति बनी मान लो शेर की बात अपना क्या जाता है। सबसे पहले रेडिया वन (93.4) नामक चैनल और उसने ऐलान किया हमें भी मराठी से प्रेम है, हम बजाएंगे मराठी गाने। इसके लिए बकायदा उन्होंने नया प्रोग्राम भी बना लिया टॉप 13 मराठी सांग। अब ये झुके तो झुके पर तुर्रा यह जनाब कि हम पहले ऐसे रेडिया चैनल हैं, जो बालीवुड के साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं के गाने बजाते हैं, आटिस्टों, संगीतकारो और गायकों के इंटरव्यू करके उन्हें प्रमोट करते हैं। तो हम हुए न सबसे लायक रेडियो चैनल। ठीक अब देखिये एक चैनल झुका तो बाकी भी झुकेंगे ही। अब शेर और शेर के भतीजे की वाह! वाह होने लगी, मराठियों ने सोचा वाह हमारे लिए कितना कुछ कर रहे हैं। चैनल ने सोचा चलो दुकान चलती रहेगी। और ठाकरे बाबा और राज बाबू ने अपनी ताकत का एक बार फिर लोहा मनवा दिया। वैसे तो महाराष्ट्र के इतिहास में कई कहानियां हैं जो इन दोनों की ताकतों को नुमाया करती हैं... लेकिन हाल-फिलहाल तो यही है। सो अब बाबा ठाकरे, भतीजे ठाकरे, एफएम चैनलों के साथ आप भी गाईये... झुकती है दुनिया झुकाने वाला चाहिए... तुन्ना तुन्ना.... ता...ता... तुन्ना।

Thursday, February 18, 2010

इंतजार करो, सराकर कभी तो जागेगी...

देश में पिछले एक हफ्ते के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं, जिसके बाद आम लोगों में लगातार यह अहसास बढऩे लगा है कि सरकार हर मोर्चे पर विफल है। पिछले हफ्ते ही गृहमंत्री पी चिदंबरम ने बयान देकर पीओके को भारत का हिस्सा बताते हुए कहा था कि यहां से वापसी करने वाले युवाओं का हम स्वागत करेंगे। इसके ठीक दो दिन के भीतर ही पुणे की जर्मन बेकरी में ऐसा धमाका हुआ, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इसमें 12 लोगों की मौत हो गई और तकरीबन 65 लोग घायल हो गये। ऐसा ही एक और बयान गृहमंत्री ने दिया कि नक्सली हथियार छोडें़, हम उनसे वार्ता के लिए तैयार हैं। अब उसके सप्ताह भर में ही नक्सलियों ने दिखा दिया कि उन्हें सरकार के शांति प्रस्ताव में कोई रुचि नहीं है। सोमवार की रात प. बंगाल के प. मिदनापुर के सिलदा और धर्मपुर स्थित ईस्टर्न राइफल के कैंप पर हमला कर 28 जवानों को मौत की नींद सुला दिया। अभी सरकार इस बात पर कोई सफाई सुबह प्रस्तुत करती, कि बुधवार को ही बिहार के एक गांव में नक्सलियों ने ताजा हमला कर 12 ग्रामीणों को मौत की मुंह में धकेल दिया और 30 से अधिक मकानों को आग के हवाले कर दिया। यहां एक बात और काबिले जिक्र है, कि सिलदा पर हुए हमले के बाद गृहमंत्री ने सफाई दी कि हमसे सुरक्षा में चूक हुई है। वहीं एक अंगे्रजी अखबार ने खबर दी कि जिन जवान सिलदा के शिविर में थे, वे गुरिल्ला युद्ध से निपटने के तरीकों से बिल्कुल भी अंजान थे। वो अनटें्रड जवान थे। साथ ही सिलदा समेत प. मिदनापुर का तमाम इलाका माओवादियों का गढ़ माना जाता है, ऐसे में वहां अनटें्रड जवानों का शिविर संचालित करने का क्या औचित्य था। हर बार जब भी कोई बड़ी वारदात घटित हो जाती है, तो सरकार कार्रवाई का आश्वासन देती है, लेकिन अब तक सरकार की ऐसी कोई भी कार्रवाई याद नहीं आती है कि जिससे लगे कि सरकार देश की सुरक्षा को लेकर गंभीर है। पुणे में हुए हमले के बाद मीडिया की खबरों में इस बात का अंदेशा व्यक्त किया गया था, कि यह वारदात पाकिस्तान स्थित लश्कर ए तैयबा के आतंकी गुटों द्वारा अंजाम दी गई हो सकती है। वहीं इंडियन मुजाहिद्दीन का भी हाथ होने का अंदेशा है। मीडिया की खबरों में यह भी कहा गया था कि 5 फरवरी को पाकिस्तान में लश्कर के हाफिज सईद ने रैली कर भारत के खिलाफ खूब जहर उगला था और धमकी दी थी कि भारत के खिलाफ हमले तब तक जारी रहेंगे, जब तक वह कश्मीर हमें नहीं सौंप देता। इतना सबकुछ होने के बाद भी सरकार का यूं चुप्पी साधे रहना और कार्रवाई का आश्वासन की गोली देना समझ से परे है। मुंबई में 26/11 के हमले के बाद पूरी दुनिया भारत के साथ थी, कि वह जैसे चाहे वैसे आतंकवादियों से निपटे। पूरे देश की भावना थी कि पाकिस्तान पर हमला कर वहां के आतंकी संगठनों को नेस्तनाबूद करने के लिए सरकार कोई कदम उठाए, लेकिन सरकार तो शांति की पुजारी ठहरी। बात करते हैं हम पाकिस्तान के साथ। निपटा लेंगे मामला। समझा देंगे कि अब ऐसा नहीं होना चाहिए, नहीं तो हम कड़े कदम उठाएंगे। करती रही बात, गुजर गया एक साल। आ गई 26/11 की बरसी। न कसाब को सजा मिली और न कोई कार्रवाई हुई। ठंडा पड़ गया सारा मामला। और अभी हाल ही बात है गृहमंत्री चिदंबरम ने कुछ सप्ताह पहले ही बोला था, यदि अब भारत पर हमला हुआ तो हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे। पुणे में हमला हो चुका है, और आतंकियों की नजर भारत में होने वाले हॉकी विश्व कप, कॉमनवेल्थ गेम्स और कई अंतरराष्ट्रीय खेलों पर पड़ चुकी है। इसी का सबूत है मंगलवार को आतंकियों का विदेशी खिलाडिय़ों को दी गई भारत न जाने की सलाह। सईद ने भी खुल कर भारत पर हमले जारी रहने की ऐलान कर दिया है और सरकार अब भी पूरा मामला बात चीत से सुलझाना चाहता है। देखना है कि आखिर कब तक घरेलू और बाहरी सुरक्षा के मामलों को सरकार सिर्फ बातचीत से सुलझाती है। फिलहाल किसी कड़ी कार्रवाई के होने का इंतजार करने के सिवा और कोई चारा देश की जनता के पास नजर नहीं आता है।

Wednesday, February 17, 2010

माई नेम इज खान नहीं... खिलाड़ी खान!

यह कहानी पूरी फिल्मी है! जी हां पूरी फिल्मी। इसके किरदार हैं- एक नागरिक, एक सरकार और एक तानाशाह। और हां इसमें शामिल है- कुछ मोहरे। यह कोई चेस बोर्ड नहीं है। यह है देश का पर्दा। जिसमें कैमरा ऑन हुआ तो, चली पूरी फिल्म। फिल्म की शुरूआत होती है- एक क्रिकेट टूर्नामेंट होने के लिए अलग अलग टीमों के लिए खिलाडिय़ों के चयन को लेकर। यह टूर्नामेंट भी खास है, क्योंकि इसमें किसी एक देश के खिलाड़ी नहीं हैं, इसमें शामिल हैं दुनिया के हर उस देश के खिलाड़ी जहां -जहां क्रिकेट की दीवानगी है। अब ऐसे में पूरे देश के साथ ही दुनिया इस टूर्नामेंट का बेसब्री से इंतजार कर रही है। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। कैमरा चल रहा है- और पहला सीन आता है। जगह मुंबई का एक पांच सितारा होटल। मंच पर खड़े हैं खिलाड़ी और कर रहे हैं इंतजार कि अब मेरी बारी आएगी। धीरे-धीरे टीम में खिलाडिय़ों का आगमन हो रहा है, बोली लग रही है और टीम के मालिकान खरीद रहे हैं अपनी पसंद के खिलाडिय़ों को। सिलसिला चल रहा है, चल रहा है एक देश के खिलाडिय़ों की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं, बेचैनी बढ़ रही है क्योंकि उनका नंबर नहीं आ रहा है। वो खुदा से दुआ कर रहे हैं और पूछ रहे हैं कि मेरा नंबर कब आएगा। अचानक बोली लगने का सिलसिला थम जाता है। हाल तालियों की गडग़ड़ाहट से गंूज उठता है और सभी जश्र मनाने लगते हैं। पर कुछ खिलाडिय़ों के चेहरे लटके हुए हैं, उनका मन खट्टा हो चुका है, सारे अरमान मिट्टी में मिल चुके हैं और उन्हें ऐसा लग रहा है कि भरी महफिल में किसी ने उनके मुंह पर जूते मार दिये हों। उनके दिमाग की नसें तड़कने लगी हैं और दिल में लग गई है गुस्से की आग। पर लोग अपने अपने जश्न में डूबे हुए हैं, इनके गुस्से और दुख का अहसास किसी को भी नहीं है। यहां खत्म हो रहा है जश्न खत्म और पहला सीन भी। राहत है कि सबकुछ ठीक ठाक निपट गया। पर रुकिये यहां से शुरू होता है फिल्म का क्लाइमैक्स। क्योंकि अब फिल्म में आ रही है रफ्तार। शुरू हो रहे हैं दमदार डायलॉग। और अब ऐसा कुछ होने वाला है कि यह फिल्म पर्दे से बाहर आकर हकीकत में लोगों को जकडऩे वाली है और पता नहीं चलने वाला कि क्या हकीकत है और क्या फसाना।

टेक -2- खुद को लुटा-पिटा और अपमानित महसूस कर रहे यह सभी खिलाड़ी हैं एक विशेष देश के। इनका गुस्सा फूटने की शुरुआत हो रही है। पहला दमदार डायलॉग- इस देश के क्रिकेट बोर्ड और देश ने किया है हमारा अपमान। जब खिलाना ही नहीं था तो बुलाया क्यों। इस देश के सरकार की साजिश है हमें और हमारे मुल्क का अपमान करने की।यहां से शुरू हो रहा है फिल्म का क्लाइमैक्स। अब इतनी बड़ी बात हो गई। चारों ओर थू-थू होने वाली है- इसलिए सामने आ रहा है टूर्नामेंट को आयोजित करवाने वाला बोर्ड और साथ ही सामने आए इस देश के गृहमंत्री। आई दोनों की सफाई- खिलाडिय़ों को खरीदने की जवाबदारी टीम मालिकों की है- इसमें बोर्ड का कोई लेना देना नहीं है। गृहमंत्री का बयान आता है- इन खिलाडिय़ों को लेने नहीं लेने के फैसला टीम मालिकों का है। इससे देश की सरकार का कोई लेना देना नहीं। साथ ही यह भी कहा जाता है - कि ये खिलाड़ी उस टीम का हिस्सा थे, जिन्होंने फटाफट क्रिकेट का विश्व कप जीता था, इन्हें टीम में शामिल किया जाना चाहिए।कैमरा घूमता है और पर्दे पर बदल जाता है सीन- सीन उस देश का आता है जहां कि खिलाडिय़ों को इस टूर्नामेंट में खेलने नहीं दिया जाता। कैप्टन कहता है- हमारे मन में कोई दुर्भावना नहीं है, यदि टूर्नामेंट में खेलने का निमंत्रण आता है तो हम जरूर शामिल होंगे।क्या इस सीन में मजा नहीं आया- फिल्म बेकार है! नहीं जनाब सिर्फ ट्रेलर देख कर पूरी फिल्म को रिजेक्ट मत करिये। क्योंकि अभी हीरो और विलेन की इंट्री तो बाकी है जनाब। अब आएगा असली मजा।

टेक-3:गृहमंत्री की नेक सलाह के बाद हीरो को अहसास होता है कि कितनी बड़ी गलती हुई है, उससे और उसके साथ ही दूसरी टीमों के मालिकों से। पर गृहमंत्री की सलाह पर अमल करने को कोई आगे नहीं आ रहा और न ही अपने किये पर माफी मांगने। पर हीरो के रातों की नींद उड़ी हुई है, भूख गायब हो गई और चैन खो गया है। उसका अंतर्मन उसे बार बार कचोट रहा है कि उसकी और दूसरों की गलती से देश अपमानित हो रहा है। वह अपने आलीशान महलनुमा घर के बेडरूम में बेड पर बैठा हुआ सिगरेट पर सिगरेट फूंके जा रहा है। घंड़ी के कांटे लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं, रात बीतती जा रही है, और भोर होने वाली है। आसमान पर सूरज की लालिमा फैल रही है और इसके साथ ही हीरो निर्णय करता है कि वह आगे बढ़ेगा और लोगों से कहेगा कि अपनी गलती को सुधार लिया जाए। सुबह होती है, हीरो घर से बाहर आता है और एक प्रेस कान्फें्रस में कहता है कि हमसे गलती हुई है, हमारा मकसद किसी का अपमान करना नहीं था। विश्व विजेता टीम के खिलाडिय़ों को भी टूर्नामेंट में खेलने का पूरा अधिकार है। प्रेस कान्फें्रस खत्म। हीरो के बयान पूरे देश की मीडिया में सुर्खियां बनते हैं और दूसरे दिन के अखबार के पहले पन्नों में प्रमुखता से छपे नजर आते हैं।अखबारों के पाठक पढ़ते हैं और हीरो की तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं। हीरो ने अपना काम कर दिया था। लेकिन यह बात फिल्म के विलेन को पसंद नहीं आती और यहीं से आता है फिल्म की कहानी में ट्विस्ट। फिल्म में आती है रफ्तार।

टेक -4: हीरो के बयान पर बूढ़ा लेकिन दमदार विलेन, जो खुद को समझता है शेर। नाराज हो जाता है। और तुरंत हीरो के खिलाफ मोर्चा खोल देता है। वह कहता है कि हीरो को अगर उस देश (दुश्मन देश) के खिलाडिय़ों को खिलाने का इतना ही शौक है तो वहीं जाकर क्रिकेट खेलो। तुमने देश का अपमान किया है माफी मांगो। पर हीरो तो ठहरा हीरो। वह भला कैसे झुकता, कैसे माफी मांगता। वह कहता है नहीं मांगूंगा माफी। मैंने कोई गलती नहीं की है, जो मुझे माफी मांगनी पड़े। पहले तो विलेन प्यार से, थोड़े गुस्से मिश्रित प्यार से समझाने की कोशिश करते हुए कहता है कि देख भईये- तू माफी मांग ले, माना कि तू फिल्म का हीरो है और पूरे देश के बेवकूफ जनता तेरी दीवानी है, पर हम भी कमजोर नहीं हैं, हमारी भी कोई औकात है। हम शेर हैं और हमारे पास पूरे शेरों की फौज है। हमसे माफी मांग।पर हीरो नहीं मांगता माफी। वह बड़े ही भोलेपन से और आंखों में आंसू भरकर (जैसा कि उसकी हर फिल्म में एक भावुक सीन होता है) बड़ी ही दर्द भरी आवाज में कहता है मैंने क्या गलती की है जो माफी मांगूं। इस देश में लोकतंत्र है और मैं इस देश का नागरिक हूं, मुझे बोलने का पूरा हक है। मैंने कोई गलत बात नहीं कही है, जिसके लिए मुझे माफी मांगनी पड़ी। विलेन का भेजा खराब हो जाता है- यह तो अपमान है। इस चूहे की इतनी औकात मेरी हुकूमउदुली करे। वह भी शेर की। जो जंगल का राजा होता है। माना कि शेर बूढ़ा है, पर है तो शेर ही। जंगल में भले चाहे ही उसका राजपाट चला गया हो, पर मुगालता लगा है और इसकी मुगालते में जीना उसे पसंद है। दर्शक परेशान हैं- मीडिया चटखारे ले-लेकर खबरे दिखा रहा है। जैसे हीरो और विलेन की इस लड़ाई से बड़ा और जरूरी काम देश के लिए कुछ और नहीं है। यदि आपने नहीं देखी यह लड़ाई तो आपका जीना बेकार है। देखो कैसे हीरो ने हिम्मत दिखाई है शेर से लडऩे की। चारों ओर कोहराम मच गया है। शेर के बच्चे भी इस लड़ाई में हीरो के खिलाफ कूद पड़ हैं, और उसके शेर सेना के चमचेनुमा तथाकथित शेर भी, अपने नाखून, और दांतों में धार लगाते हुए कूद पड़ हैं हीरो का शिकार करने के लिए। यह वह वक्त है- जब हीरो की कई महीनों की मेहनत साकार होने वाली है, उसकी इस हकीकतनुमा फिल्म में एक और फिल्म आने वाली है। हीरो अपनी मेहनत को जाया नहीं करना चाहता, और चाहता है कि उसकी पर्दे वाली फिल्म बड़े पैमाने पर सफल हो, जनता उसे देखे और कर दे धनवर्षा। तभी तो क्रिकेट टूर्नामेंट का खर्चा निकलेगा। इसके लिए लगा है जी जान से रात दिन एक करने में। अमेरिका में प्रचार, जर्मनी में प्रचार, दुबई में प्रचार और पता नहीं कहां कहां प्रचार कर रहा है । मिन्नतें करते हुए देख लो भाई इसके लिए मैंने बहुत मेहनत की है, इसे जरूर सफल बना दो। देश की जनता बेचारी समझ नहीं पा रही क्या करें। हीरो का साथ दें तो शेर नाराज होगा और शेर का साथ दें तो हीरो का दिल टूटेगा। वह वेट और वॉच का फार्मूला अपनाती है।

टेक -5: कहानी में ट्विस्ट आता है, जब शेर के बार-बार समझाने पर भी हीरो उसकी बात मानने को तैयार नहीं होता, और अपनी बात पर डटा रहता है। दर्शक बेचारे दुखी हैं, मीडिया में खबरें बन रहीं हैं, हजारों पन्नें रंगे जा रहे हैं इस फिल्मी लेकिन हकीकत की कहानी से। अब शेर खफा है- वह ऐलान करता है, हीरो देशद्रोही है। उसे बख्शा नहीं जाएगा। उसकी आगामी फिल्म का विरोध किया जाएगा। शेर का आदेश है, कहीं भी फिल्म नहीं चलने दी जाएगी। उसकी शेर सेना सक्रिय है, खुश है और शिकार को घेरने के लिए हुंकारे भर रही है। इसी शेर सेना का एक शेर कहता है हीरो साला जंगल से बाहर रह कर जबान की कैंची चला रहा है, जरा जंगल आ बेटे फिर बताते हैं कि हम क्या हैं।हीरो भी गजब का हिम्मती है भाई। नहीं डरता, जरा भी नहीं डरता शेर के चमचों की धमकियों से। खम ठोंककर वापस आता है जंगल में। और ऐलान करता है, आ गया हूं मैं। बोले क्या बोलना है। लड़ो लड़ाई। शेर भौंचक है। यार यह तो वाकई हीरो है। वह ठंडा पड़ता है। बार-बार कहता है माफी मांग ले यार। किस्सा खत्म करें। पर शेर की सेना को यह पसंद नहीं कि हमारा राजा हीरो के आगे झुके। बहुत दिन से पड़े पड़े जंग लग रहा है और अब मौका है लडऩे को तो राजा कमजोर हो रहा है। नहीं चलेगा यह हुक्म। शेर सेना हीरो की फिल्म का विरोध करती है।

एक्शन सीन:अब आएगा असली मजा। दर्शक यही सोचता है, पर वह परेशान भी है। हीरो के लिए उसके दिल में दर्द है। हीरो पर शेर सेना के हमले बढ़ रहे हैं। ऐसे में जंगल में तथाकथित लोकतंत्र का दम भरने वाले कुछ गद्दीनशीं लोग आलोचनाओं के बाद हीरो के पक्ष में आते हैं। तू डर मत। इस शेर ने साले ने हमें भी परेशान कर रखा है। हम तेरे साथ हैं । चढ़ जा बेटा सूली पर। हम तेरे साथ हैं। हीरो को सहारा मिलता है। उसकी साथी लोगों का जो शेर के खिलाफ खड़े हो रहे हैं। हीरो के साथ आ रहे हैं। हीरो के चेहरे पर तनाव है, वह दुखी है। बार-बार कंप्यूटर पर लिख कर लोगों को कह रहा है- मुझे दुख हो रहा है, मैं शेर की बहुत इज्जत करता हूं। वह कहता है, मैं देशद्रोही नहीं हूं। मुझे दुख हो रहा है कि मुझे अपनी देश भक्ति साबित करनी पड़ रही है। दर्शक बेचार भ्रमित है। उसके दिल में शेर के लिए नफरत बढ़ रही है। हीरो के लिए हर आंख में आंसूं हंै। हीरो झुकने को तैयार नहीं है।शेर की सेना अब हथियार उठा लेती है। जंगल में हर उस जगह जहं हीरो, पर्दे पर नई फिल्म लाने वाला है, हमले कर रही है, धमकी दे रही है, ऐसे में सरकार सामने आ रही है। उसने अपने रक्षकों को हीरो की रक्षा में खड़ा कर दिया है। दर्शक की बेचैनी बढ़ती जा रही है, क्या होगा। हीरो हारेगा या जीतेगा। मीडिया में कयासों की बाढ़ लग रही है, पूरा प्राइम टाइम हीरो, शेर की जंग से पट गया है। सब परेशान हैं। अब देखो शेर ने यह कह दिया। शेर तानाशाही कर रहा है, सरकार सो रही है। हर ओर इस जंग के गोलियों की आवाजें, धमाके और हर वह कुछ जो जंग में होता है, देश परेशान हो गया है।

टेक -6 क्लाइमैक्स का पीक हीरो की फिल्म की रिलीज की तारीख पास आती जा रही है, दर्शक परेशान है, कैसे जाएंगे, फिल्म देखने। चारों ओर शेर की सेना है। ऐसे में तलवार पर चल रहे हैं वह लोग जिनने हीरो की फिल्म में पैसे लगाएं हैं, अगर फिल्म रिलीज नहीं हुई तो हम तो लुट जाएंगे। यह जंग तो हमें कंगाल कर देगी। पर वह भी कुछ नहीं कह सकती। फिल्म का हीरो झुकने को तैयार नहीं है और शेर मान नहीं रह रहा है। वह फिल्म की रिलीज को टालने की कोशिश कर रहा है। अब सरकार सामने आ रही है, भाई शेर से मत डरो। अपना धंधा करो। हम सुरक्षा देंगे। तुम्हारी हर दुकान में हमारे लोग रहेंगे, शेर की सेना से बचाएंगे।पर भाई ये बनियों ने भी कच्ची गोली नहीं खेली, वह जानते हैं कि सरकार का आश्वासन खोखला है, और शेर भले ही बूढ़ा है, पर सेना में जोश है, वह हमें फाड़ खाएगी। नहीं होगी रिलीज पर्दे की फिल्म।पूरे देश का दर्शक वर्ग परेशान हो गया है। ऐसे में शेर को लगता है कि मामला ज्यादा बढ़ रहा है और हीरो झुकने को तैयार नहीं है। सो अपनी किरकिरी कराने से अच्छा है कि दो-चार धमकियों के साथ हीरो को ही जीतने दो भाई, अपना काम तो हो गया।

टेक-7हैप्पी एंडिंग : तो भाईयों अब मौका आ गया है जजमेंट डे का। शेर कहता है देखो जिसे देखनी है इस गद्दार की फिल्म। हमें कुछ लेना देना नहीं है।अब हीरो भी नरम पड़ रहा है। वह मुस्करा रहा है कि, फिल्म में हमेशा हीरो जीतता है और हकीकत में भी मैं ही जीत रहा हूं। दर्शक भी खुश हो रहे हैं कि कि चलो नया मनोरंजन होगा। इधर लोकतंत्र के नुमाइंदे भी राहत की संास ले रहे हैं। चलो टेंशन खत्म हो रही है। बनिए फिल्म को रिलीज करते हैं और पहले ही दिन टूटते हैं कई रिकार्ड। पर्दे की पिक्चर बिगेस्ट हिट। जर्मनी में प्रशंसक पागल हो गये हैं, अपने हीरो की फिल्म देखने के लिए टूट पड़े हैं दुकानों पर। 5 सेंकेंड में ही पूरी दुकान भर जाती है ग्राहकों से। मीडिया खुश है। हीरो का गुणगान कर रहा है। और हीरो अपनी हर फिल्म की तरह रो रहा है, शुक्रिया अदा कर रहा है, कह रहा है मैं बहुत खुश हूं। मेरी मेहनत रंग लाई। आप मुझे कितना प्यार करते हैं, इसका पता चल गया। शक तो पहले भी नहीं था पर आजमाना जरूरी था। दर्शक खुश है, वह पर्दे की फिल्म देख कर रो रहा है, हंस रहा है, हीरो के लिए उसका प्यार बढ़ गया है। देखो यह तो रीयल हीरो है। फिल्म में भी जीतता है और हकीकत में भी।
हीरो भी अब ठंडा पड़ रहा है, वह अपने इलेक्ट्रानिक पोस्ट आफिस पर चिी लिख कर कह रहा है- यदि मेरी किसी बात से किसी को ठेस पहुंची हो तो मुझे खेद है, भाई। शेर भी खुश है हम जीत गये। हीरो ने माफी मांग ली। हम शेर हैं आखिर। दर्शक खुश, शेर खुश, हीरो खुश। मीडिया खुश। सब खुश। हैप्पी एंडिंग। पर मेरा दिमाग चलता है। फिल्म के रिजल्ट देख कर। इस पूरी जंग में अलग रहने वाला मैं अब परेशान हो जाता हूं। क्या सब कुछ वैसा ही है जैसा दिखा, या दिखाया गया।मुझ पढ़ाकू को याद आया कि भईये ये हीरो बेचारा नहीं है। यह तो खिलाड़ी निकला रे। शेर भी खिलाड़ी है। न हीरो जीता न शेर हारा। हारा तो देश और देश के बेचारे दर्शक। मुझे याद आया हीरो देश के नामी यूनिवर्सिटी से मॉस मीडिया का परास्नातक रहा है। अव्वल छात्र। पिछले 20 सालों से देश की जनता को अपने आंसूओं से बेवकूफ बना कर अपना माल बेच रहा है। इसने अपना माल बेचने में महारत हासिल करने की डिग्री की है भाई । फिर तो जीतना इसको ही था। वह भी रात में बेडरूम में सिगरेट फूंक रहा है, और सोच रहा है। देश की जनता कितनी भावुक है। भावनाओं को कैश कराओ और माल बनाओ। उसे सुख की नींद आएगी। सो गुड नाइट लाइट्स ऑफ। तो पर्दे के खिलाड़ी कुमार सावधान हो जाइये। क्योंकि टक्कर देने आ रहा है एक नया खिलाड़ी। खिलाड़ी खान। उम्मीद है कि खान को यह नया टाइटल पसंद आएगा और वो इस पर भी कोई फिल्म बनाएंगे खिलाड़ी खान।

Sunday, November 8, 2009

दर्द होता है क्यो बार बार

बस पल भर की बात है गुजर जाएगा यह मंजर भी, गुजर जाते हैं हर मंजर जैसे ।
बस निशां बाकी रह जाएंगे। हर निशां बदल जाते हैं यादों में।
जैसे हर याद रह जाती दिल में। कुछ अच्छी कुछ बुरी।
हर याद का एहसास रह जाता है बाकी।
ये अश्कों से भीगीं पलकें, यह दिलों में उठता दर्द।
यह सब बस है तो सिर्फ यादें ही।
फिर क्यों सालता है दर्द, क्यों उठती हैं टीसें दिल में, जब गुजर गया है हर मंजर यहां से।
फिर क्यों भर आती हैं आंखें, जब कुरेदता है कोई जख्मों को।
फिर क्यों रुंध जाता है गला, जब कोई याद दिलाता है तेरी।
कभी पूरी नहीं होती है कमी जिनकी, समझ नहीं पाते कि फिर कैसे जिए जा रहे हैं उनके बिन हम।