Thursday, February 18, 2010

इंतजार करो, सराकर कभी तो जागेगी...

देश में पिछले एक हफ्ते के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं, जिसके बाद आम लोगों में लगातार यह अहसास बढऩे लगा है कि सरकार हर मोर्चे पर विफल है। पिछले हफ्ते ही गृहमंत्री पी चिदंबरम ने बयान देकर पीओके को भारत का हिस्सा बताते हुए कहा था कि यहां से वापसी करने वाले युवाओं का हम स्वागत करेंगे। इसके ठीक दो दिन के भीतर ही पुणे की जर्मन बेकरी में ऐसा धमाका हुआ, जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इसमें 12 लोगों की मौत हो गई और तकरीबन 65 लोग घायल हो गये। ऐसा ही एक और बयान गृहमंत्री ने दिया कि नक्सली हथियार छोडें़, हम उनसे वार्ता के लिए तैयार हैं। अब उसके सप्ताह भर में ही नक्सलियों ने दिखा दिया कि उन्हें सरकार के शांति प्रस्ताव में कोई रुचि नहीं है। सोमवार की रात प. बंगाल के प. मिदनापुर के सिलदा और धर्मपुर स्थित ईस्टर्न राइफल के कैंप पर हमला कर 28 जवानों को मौत की नींद सुला दिया। अभी सरकार इस बात पर कोई सफाई सुबह प्रस्तुत करती, कि बुधवार को ही बिहार के एक गांव में नक्सलियों ने ताजा हमला कर 12 ग्रामीणों को मौत की मुंह में धकेल दिया और 30 से अधिक मकानों को आग के हवाले कर दिया। यहां एक बात और काबिले जिक्र है, कि सिलदा पर हुए हमले के बाद गृहमंत्री ने सफाई दी कि हमसे सुरक्षा में चूक हुई है। वहीं एक अंगे्रजी अखबार ने खबर दी कि जिन जवान सिलदा के शिविर में थे, वे गुरिल्ला युद्ध से निपटने के तरीकों से बिल्कुल भी अंजान थे। वो अनटें्रड जवान थे। साथ ही सिलदा समेत प. मिदनापुर का तमाम इलाका माओवादियों का गढ़ माना जाता है, ऐसे में वहां अनटें्रड जवानों का शिविर संचालित करने का क्या औचित्य था। हर बार जब भी कोई बड़ी वारदात घटित हो जाती है, तो सरकार कार्रवाई का आश्वासन देती है, लेकिन अब तक सरकार की ऐसी कोई भी कार्रवाई याद नहीं आती है कि जिससे लगे कि सरकार देश की सुरक्षा को लेकर गंभीर है। पुणे में हुए हमले के बाद मीडिया की खबरों में इस बात का अंदेशा व्यक्त किया गया था, कि यह वारदात पाकिस्तान स्थित लश्कर ए तैयबा के आतंकी गुटों द्वारा अंजाम दी गई हो सकती है। वहीं इंडियन मुजाहिद्दीन का भी हाथ होने का अंदेशा है। मीडिया की खबरों में यह भी कहा गया था कि 5 फरवरी को पाकिस्तान में लश्कर के हाफिज सईद ने रैली कर भारत के खिलाफ खूब जहर उगला था और धमकी दी थी कि भारत के खिलाफ हमले तब तक जारी रहेंगे, जब तक वह कश्मीर हमें नहीं सौंप देता। इतना सबकुछ होने के बाद भी सरकार का यूं चुप्पी साधे रहना और कार्रवाई का आश्वासन की गोली देना समझ से परे है। मुंबई में 26/11 के हमले के बाद पूरी दुनिया भारत के साथ थी, कि वह जैसे चाहे वैसे आतंकवादियों से निपटे। पूरे देश की भावना थी कि पाकिस्तान पर हमला कर वहां के आतंकी संगठनों को नेस्तनाबूद करने के लिए सरकार कोई कदम उठाए, लेकिन सरकार तो शांति की पुजारी ठहरी। बात करते हैं हम पाकिस्तान के साथ। निपटा लेंगे मामला। समझा देंगे कि अब ऐसा नहीं होना चाहिए, नहीं तो हम कड़े कदम उठाएंगे। करती रही बात, गुजर गया एक साल। आ गई 26/11 की बरसी। न कसाब को सजा मिली और न कोई कार्रवाई हुई। ठंडा पड़ गया सारा मामला। और अभी हाल ही बात है गृहमंत्री चिदंबरम ने कुछ सप्ताह पहले ही बोला था, यदि अब भारत पर हमला हुआ तो हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। इसका मुंहतोड़ जवाब देंगे। पुणे में हमला हो चुका है, और आतंकियों की नजर भारत में होने वाले हॉकी विश्व कप, कॉमनवेल्थ गेम्स और कई अंतरराष्ट्रीय खेलों पर पड़ चुकी है। इसी का सबूत है मंगलवार को आतंकियों का विदेशी खिलाडिय़ों को दी गई भारत न जाने की सलाह। सईद ने भी खुल कर भारत पर हमले जारी रहने की ऐलान कर दिया है और सरकार अब भी पूरा मामला बात चीत से सुलझाना चाहता है। देखना है कि आखिर कब तक घरेलू और बाहरी सुरक्षा के मामलों को सरकार सिर्फ बातचीत से सुलझाती है। फिलहाल किसी कड़ी कार्रवाई के होने का इंतजार करने के सिवा और कोई चारा देश की जनता के पास नजर नहीं आता है।

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