Friday, April 8, 2011

शुक्रिया मि. अफरीदी...

शुक्रिया मिस्टर अफरीदी कि आपने भारत को उसके दिल के बारे में बता दिया। और हां आपका भी शुक्रिया मिस्टर राजपक्षे। क्रिकेट वल्र्ड कप का खुमार उतर गया, पर आप दोनों पर हमारी जीत का जश्न अब तक चल रहा है। हमें तो अब भी याद है कि किस तरह भारत ने क्वार्टर फाइनल में आस्ट्रेलिया को धोकर अपने फार्म में वापसी की थी। और 121 करोड़ हिंदुस्तानियों के साथ ही विश्लेषकों का भरोसा भी पक्का किया था कि वह फाइनल खेलेगा। और हमारे भरोसे का क्या असर हुआ, यह सबके सामने है। अफरीदी जी, अब सेमीफाइनल में आपकी किस्मत खराब थी और इतिहास ने खुद को एक बार फिर दोहरा ही दिया। तो इसमें हमारी क्या गलती। चलिये एक बात बताइये: यहां से जाने के बाद तो आपने भी यह कहा था कि भारत से दुश्मनों जैसा बर्ताव क्यों। क्रिकेट को क्रिकेट की तरह क्यों नहीं लेते आप लोग। फिर अचानक एक दिन बाद ही खिसियानी बिल्ली जैसे खंभा क्यों नोचने लगे। वही पुराने पाकिस्तानियों की तरह रेंकने लगे: मुझे लगता है भारतीयों का दिल हम पाकिस्तानियों जैसा नहीं है। आपने देखा है हमारा दिल। आप शायद भूल गये, हम याद दिलाते हैं-: जब आपके मुल्क के बाशिंदों को सेमीफाइनल देखने का टिकट नहीं मिला था, तो हमारे चंडीगढ़, मोहाली और उसके आस-पास के क्रिकेट के दीवानों ने अपने टिकट उनको गिफ्ट किये थे। वो भी सिर्फ इसलिये क्योंकि वो मेहमान थे, और हम मेहमान को खाली हाथ नहीं जाने देते। उन टिकटों की कीमत का अंदाजा है अफरीदी साहब: हम बताते हैं पूरे 1 लाख रुपए। ये अगर कम लगता है तो हमारे दिल की बड़प्पन का एक नमूना और देखिये, जब आपके चाहने वालों को कहीं होटल में जगह नहीं मिली, तब भी हमारे लोगों ने उन्हें अपने घर में रखा, बिल्कुल एक अच्छे मेजबान की तरह, बिना यह सोचे कि ये वही पाकिस्तानी हैं, जहां के चंद लोग हमारी धरती को खून से रंग देते हैं। हमने आपके लोगों की जमकर खातिरदारी की। एक ऐसे समय में जब आपकी टीम बिल्कुल अछूत की तरह रही है, हमने उसका सम्मान वापस दिलाया। यहां तक की आपके वजीरेआजम गिलानी साहब की आवभगत में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी, बल्कि खुद हमारे खिलाड़ी तक भूखे रह गये। और आप कहते हैं हिंदुस्तानियों को अल्लाह ने हमारे जैसा बड़ा दिल नहीं दिया। आपने एक और बात कही: भारत के साथ टिकाऊ रिलेशनशिप नहीं हो सकती, पिछले 60 सालों में आपने लाख कोशिशें कीं, पर भारत की कमजोरी की वजह से कभी रिश्ते पनप नहीं पाए। आपको एक बात याद दिला दें कि आप पाकिस्तानी दिलों के बड़प्पन पर इतरा रहे हैं, उनमें से सैकड़ों दिल हिंदुस्तान के बड़े दिल और टिकाऊ रिलेशनशिप की चाह का नतीजा है। शायद याद न आ रहा हो, एक नजर डालिये: आपके मुल्क के दिल की ऐसी गंभीर बीमारी से पीडि़त मासूमों पर, जिनका इलाज न तो आपके प्यारे पाकिस्तान में हो रहा था, और न ही सिंगापुर जैसे विकसित मुल्क में, हमने धड़कनें दीं। उनमें से कुछ ये हैं-नूर, सईद रहीम, कुनूत बेग और हसीब। इनके सीने में पाकिस्तानी दिल धड़कता है, लेकिन उसकी वजह हमारा दिल है। आपके मुल्क की 9 महीने की बच्ची नूर के दिल का इलाज कर उसे जिंदगी दी थी। इससे पहले मार्च 2009 में आपके कलेजे के टुकड़े, सईद रहीम जो साल भर का भी नहीं था, के दिल में लगातार बहते खून को रोक कर उसे जिंदगी की सांसे दीं। दिल्ली के दिलवाले डाक्टर राजेश शर्मा ने एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट में उसका आपरेशन किया था। और खुदा गवाह है कि उसकी अम्मी नादिया और अब्बा सैयद सादत अली की खुशी के आंसू देखकर हमारी भी पलकें गीली हो गई थीं। हमारे दिल के बारे में नादिया से पूछिये- जो आज भी कहती हैं कि हिंदुस्तानियों ने हमारे बच्चे के लिए कितनी दुआएं की थीं। ऐसे ही दो बच्चों 12 साल के हसीब और 13 साला कुनूत बेग के दिल को हमारे बेंगलूर के जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवेस्कुल के डा. मंजूनाथ और उनकी टीम ने तब धड़कने दीं, जब आपके कराची के इंस्टीट्यूट साइंस ऑफ हास्पिटल इन पाकिस्तान ने ठीक करने से इनकार कर दिया था। हमारे दिल के बारे में पूछना है तो पूर्व कप्तान वसीम साहब से पूछिये, कि कैसे हमने मुंबई को मिले दर्द के अपने सीने में छुपा कर भी, उनकी बेगम हुमा का इलाज किया था। जब वो ऐसे बुखार से पीडि़त थीं, जिनका इलाज सिंगापुर में भी नहीं हो पाया था। हालांकि हम उन्हें जिंदगी नहीं दे पाये। जिसका अफसोस हमें आज भी है। इसके बाद भी आपको हमारा दिल छोटा लगता है, तो ठीक है। आपका दिल तो इतना बड़ा है कि वल्र्ड कप से बाहर होने के बाद आपने कामरान अकमल, युनूस खान और अब्दुल रज्जाक को ही टीम से लात मारकर बाहर निकाल दिया है। खैर आपका दिल बहुत बड़ा है साहब-तभी तो आपने अपने सबसे बड़े सितारे शोएब अख्तर साहब को इतने अहम मैच में बाहर बिठा कर रखा था। बेचारे शोएब उन्होंने तो मात्र संन्यास लेने की घोषणा की थी, पर वह लेते तो वल्र्ड कप के बाद ही न। खैर आपका दिल बड़ा है जनाब। टिकाऊ रिलेशनशिप की आपकी कोशिशों की आपको शायद खुशफहमी है। तो अब हकीकत से रूबरू होईये: भारत ने 26/11 हमले के बाद भी आपकी तरफ दोस्ती भरा हाथ बढ़ाया, सारी गल्तियों को माफ कर। थोड़ा पीछे चलते हैं: आपको याद होगा, कारगिल युद्ध के बाद भी हमने आपकी तरफ हाथ बढ़ाया था। राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने आगरा समझौता भी किया था, लेकिन कभी पालन नहीं किया। शिमला समझौते की तो खैर बात ही क्या करना। 5 अक्टूबर 2005 में जब भूकंप से पूरा पाकिस्तानी कश्मीर और हमारे कश्मीर ने भूकंप की तबाही का मंजर देख रहा था, उस वक्त भी आपकी मदद के लिए सबसे पहले हमारे ही हाथ उठे थे। आपके 67 हजार पीडि़तों के लिए हमने सबसे पहले तीन कंसाइटमेंट सहायता सामग्री आपके लिए भेजी थी। जबकि हमारे लोग भी इस कहर से जूझ रहे थे। और शायद आप भूल गये, 2010 में पूरे पाक में आई उस जानलेवा बाढ़ को, जिसने आपको पूरी तरह बंजारा बना दिया था, रोटी-पानी नहीं था आपके पास, तब हमने रसद, पानी, टेंट और न जाने कितनी राहत सामग्री सबसे पहले भेजी थी। उसके बाद भी आप कहते हैं कि हमने टिकाऊ रिलेशनशिप के लिए कुछ नहीं किया। आपने तो 2006 में मुंबई के दिल को छलनी करने वाले गुनाहगारों को ही हमें नहीं सौंपा। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। आपने ने तो हिंदुस्तान के उस दुश्मन को भी अपने दामन में छुपा रखा है, जिसने आपकी शह पर 1993 में मुंबई में हमला धमाके किये, और उसके बाद भी जब-तब दूसरे शहरों में विस्फोट को अंजाम देता रहा है। उसने तो आपकी टीम के चेहरे पर भी फिक्सिंग की कालिख पोती है। घटनाएं और भी हैं, जब आपने दोस्ती की पर उसका फर्ज निभाने के वक्त पर पीछे हट गये। खैर आपका दिल बड़ा है, अब अपने बड़े दिल से अपनी हार का मातम मनाईये। माननीय राष्ट्रपति राजपक्षे जी: आपका और आपके नागरिकों का भी बहुत-बहुत धन्यवाद, भारत की 121 करोड़ जनता के विश्वास से हारकर उन्हें खुशी के दो पल देने के लिए। आप तो जब भी भारत आते हैं, यहां की धरती को चूमते हैं शायद इसीलिए आपने बतौर तोहफा यह जीत दे दी है। आपने भारत के नमक का हक अच्छा अदा किया है। राजपक्षे जी: शांति और खुशहाली की तरफ बढ़ते श्रीलंका पर राज करते हुए आप शायद लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम के बुरे दौर को भुल चुके हैंं। ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि एक मशहूर कहावत है: जो इतिहास को भुलाता है, उसे इतिहास भी कभी याद नहीं रखता। फिर चाहे वो श्रीलंका का राष्ट्रपति ही क्यों न हो। सो याद दिला दें- भारत, आस्टे्रलिया, अमेरिका ओर यूरोपीय संघ समेत 32 देशों में अपना मकडज़ाल फैलाने वाले वेलुपल्ली प्रभाकरन का आतंकी संगठन लिट्टे जब आपके नागरिकों की जान ले रहा था और आपकी संप्रभुता को चुनौती दे रहा था तो उस दौरान भारत ही आपके साथ खड़ा था। वो भी तब जब पूरा अंतरराष्ट्रीय कुनबा लिट्टे के खिलाफ आपके युद्ध में साथ देने से इनकार कर रहा था। आपको तो यह याद ही होगा, कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तब आपकी सहायता की थी। 1987 में उन्होंने भारतीय शांति सैनिकों को लिट्टे से लडऩे के लिए श्रीलंका भेजा था। हालांकि एहसान फरामोश श्रीलंकाईयों ने अपने मददगार पर तब 30 जुलाई 1987 को तब जानलेवा हमला कर दिया था, जब वो आपके राजकीय अतिथि थे और गार्ड ऑफ ऑनर ले रहे थे। अब बताइये फाइनल मुकबाले में आप सुरक्षि रहे कि नहीं। खैर इसी कड़ी में यह भी याद करें कि लिट्टे से लड़ाई में आपके 80 हजार से 1 लाख लोग मौत की भेंट चढ़ चुके हैं। और इस लड़ाई में हमने हमारे प्रधानमंत्री को भी खो दिया। आप भले चाहे भूल जाएं पर कोई भी हिंदुस्तानी 21 मई 1991 का वह काला दिन नहीं भूलेगा, जब लिट्टे के लोगों ने राजीव गांधी को बम से उड़ा दिया था। आपकी इस लड़ाई में 1990 तक हमने 1000 करोड़ झोंके थे। इतना ही नहीं हमारे 1 लाख शंाति सैनिकों ने भी आपकी लड़ाई में साथ दिया, जिसमें से 1200 सैनिक शहीद हो गये थे। तो यकीन मानिये आज जिस देश के राष्ट्र प्रमुख के रूप में मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में 2 अपै्रल को फाइनल मैच का पूरे राजकीय सम्मान के साथ लुत्फ उठाया था और भारत की जीत के गवाह बने थे, वह शांति से भरा-पूरा श्रीलंका भारत की मेहरबानी से ही आपको मिला है। जाने दीजिये: अब यह बतायें: अगर ऐसा है तो आपकी टीम के कप्तान ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए वन डे और टी- 20 क्रिकेट से इस्तीफा क्यों दे दिया। जबकि क्रिकेट के दीवानों को मालूम है कि वह कितेन शानदार खिलाड़ी हैं। खैर आपकी टीम का प्रदर्शन काबिले तारीफ था। आपको एक बात याद दिलानी है: आपके यहां के आर्थिक हालात क्या हैं, यह आप भी बेहतर जानते हैं। तो आपके खिलाडिय़ों को हमने अपने यहां आईपीएल में जगह देकर कहां से कहां पहुंचाया आपको याद ही होगा। और एक बात जो सच है 121 करोड़ की दुआओं और 11 लोगों की चार सालों के खून पसीने की कमाई पर भला दो करोड़ श्रीलंकाईयों की दुआएं कैसे भारी पड़तीं। अब भला भगवान बुद्ध 121 करोड़ की दुआ कबूल करते या 2 करोड़ की। सो जब हमारी जीत के जश्न का खुमार कम हो रहा है, यह याद दिलाने के लिए कि कैसे हम चीतों को चपलता और रफ्तार में पीछे छोड़ते हुए विश्व विजेता बनें आपका धन्यवाद।

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