Wednesday, March 23, 2011

दुआ कीजिये....धोनी का भाग्य फिर फिर चमके

होली तो बीत गई है, इसके रंग भी अब साथ छोडऩे की तैयारी में हैं। पर खास एक ऐसा रंग है, जिसके रंग में इन दिनों पूरा भारतीय उपमहाद्वीप रंगा हुआ है और वह रंग है क्रिकेट का। हार-जीत की अनिश्चितता और आखिरी गेंद तक रोमांच, सांसों को रोके रखने वाला गेंद और बल्ले का संग्राम अब आखिरी चरण की ओर बढ़ रहा है। नॉक आउट मुकाबले शुरू हो चुके हैं। जिससे पार पाना भारत के लिए भूसे में सुई ढूंढने जैसा दुरुह काम होगा। आपका मुकाबला किन खतरनाक दुश्मनों से होने वाला इसका नजारा पहले ही मुकाबले में हमारे पारंपरिक दुश्मन पाकिस्तान ने वेस्टइंडीज को 10 विकेट से करारी मात देकर दे दिया है। वहीं दूसरे मुकाबले में टीम इंडिया का वह दुश्मन होगा, जिसने 2003 के आखिरी क्षणों में आपकी आंखों सेविश्व कप जीतने का सपना काजल की तरह चुरा लिया था।ऐसी किसी भी शर्मनाक स्थिति से बचने के लिए हर टीम अपनी जान लड़ाने के लिए तैयार है। ऐसे में दुनिया की 50-50 फार्मेट वाले इस खेल की दुनिया के दूसरे पायदान पर काबिज भारतीय टीम की राहें निश्चित तौर पर आसान नहीं होनी हैं। राहें आसान करने के लिए दुआ कीजिये।

दूसरा कारण भी है जिससे आपकी दुआओं की जरूरत ज्यादा पडऩे वाली है।पिछले जितने भी लीग मुकाबले हुए हैं, उनमें हमारे धोनी के धुरंधरों का प्रदर्शन देखते हुए कहीं से भी नहीं लग रहा कि यह टीम वल्र्ड कप जीतने की असली हकदार है। बांग्लादेश के साथ उद्घाटन मैच को छोड़ कर कहीं से भी हमारे महारथियों की बॉडी लैंग्वेज (शारीरिक भाषा) से जीत की भूख नहीं झलकी। यकीन के लिए थोड़ा फ्लैश बैक में चलते हैं-
पहला: इंग्लैंड के साथ का लीग मैच याद कीजिये। भारत ने 339 रनों का सागरमाथा टाइप बड़ा लक्ष्य इंग्लिश टीम को दिया। पूरा देश बड़ी जीत की उम्मीद कर रहा था। पर हमारी लचर फील्डिंग और सुपर फास्ट और महान स्पिनरों की कमजोर गेंदबाजी ने ओवर दर ओवर इस खुशफहमी को कम करना शुरू कर दिया। आखिर में यूनियन जैक ने 338 का स्कोर कर मैच टाइ कर दिया।
दूसरा: या फिर द. अफ्रीका के साथ कैसे सचिन, सहवाग और गंभीर को छोड़कर बाकी 8 खिलाड़ी 29 रन के कुल स्कोर पर पैवेलियन लौट आये थे। तीसरा: आयरलैंड के साथ हुए लीग मैच में कैसे धोनी के महान सिपाही इतने दबाव में आ गये थे, कि उन्हें 204 का बच्चों जैसा टार्गेट भी 240 जैसा युवक जैसा लग रहा था।
चौथे: कुछ कारण ऐसे हैं, जिनके बारे में हम सिर्फ भगवान की दया और आपकी दुआ के सहारे ही पार पा सकते हैं। वो हैं, सहवाग चोटिल हैं, हरभजन विकेट निकालने में नाकाम हो रहे हैं, पठान के बल्ले की आग बर्फ की मानिंद ठंडी पड़ गई है, ऐसे अनके कारण है। ज्यादा विस्तार में न जाएं तो बेहतर है। सो यहां भी दुआओं की जरूरत है।
आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण कारण :अगर आप इन सभी कारणों से असहमत हैं, और दुआ नहीं करना चाहते तो एक ऐसा कारण प्रस्तुत है, जिससे 99.98 प्रतिशत लोग सहमत होंगे और टीम इंडिया की जीत की दुआ के लिए अपने हाथ उठा देंगे। और वह कारण है सचिन रमेश तेंदुलकर। जी हां यह वह आखिरी कारण है, जो पिछले 21 सालों से क्रिकेट की साधना में रत है और महंगाई, भ्रष्टाचार, सड़कों के गड्ढे, पानी की किलल्त, बिजली का रोना, फसल का निपटना, चीनी का महंगा होना, दाल का रुलाना, सब्जियों के कठिन सब्जबाग और 26/11 हमले के सदमे, सरकार की नाकामियों, नेताओं की बंदरबांट, जनता का पैसा अफसरों की जेब में, किसानों की खुदकुशियां जैसी, लाखों दुश्वारियों के बीच खुशी के चंद मौके तलाशते आम आदमी को अपने चौके-छक्कों की बरसात, विरोधी गेंदबाजों की धज्जियां उड़ाते अपने शतकों के शतक के करीब पहुंच कर मुस्कराने के मौके दिये हैं।
क्योंकि सचिन ने पूरे देश को एक ही रंग में रंग कर अनेकता में एकता की भावना को चरितार्थ कर दिया है।
तो अगर आप उस खुशी देने वाले इंसान को उसकी साधना, तपस्या, सेवा और लाखों खुशियों के दान का प्रसाद देना चाहते हैं, तो दुआ कीजिये कि उसका वह सपना पूरा हो जाए, जो उसने 10 साल की नादान उम्र में देखा: एक दिन मैं ये कप घर लेकर आउंगा। तो दुआ कीजिये कि किस्मत के धनी धोनी का भाग्य एक बार फिर जोर मारे ताकि अगर हमारे सारे महारथी मैदान पर फेल भी हो रहे हों, तो केवल अपने भाग्य के बल पर ही कई शानदार जीतें हासिल करने वाले धोनी इस बार एक ऐसी जीत हासिल करें, जिससे सचिन का संन्यास गर्व से भरा हो। क्योंकि अगर इस बार ऐसा न हुआ तो 36 साल के सचिन की बढ़ती उम्र उन्हें अपने सपने को पाने के लिए दौडऩे की इजाजत नहीं देने वाली। तो हाथ दुआ में उठाओ, धोनी की किस्मत चमके और पूरा हो एक सपना। मैं एक दिन यह कप घर लेकर आउंगा।

No comments: