Thursday, July 24, 2008

इंतज़ार ......

इंतज़ार.इंतज़ार और इंतज़ार। उफ़ कितना लम्बा है ये इंतज़ार। बचपन में बडे होने का इंतज़ार, जवानी में नौकरी का इंतज़ार। नौकरी के बाद तनखाह का इंतज़ार। फिर रंगीन सपनो का इंतज़ार। फिर उनके पूरा होने का इंतज़ार। कभी मन भागता है , कभी कोसता है तुम्हे ऐ इंतज़ार। तुम इनते दुःख देतो क्यों हो की आदमी टूटने लग जाए। तुम इतने जालिम हो जाते हो कभी कभी की बस तुमसे दूर जाने की ख्वाहिश होती है। पर इतना होने के बाद भी तुम कभी कभी दिल में मीठी मीठी कसक देते हो। बूझो भला कब। चलो में ही बता देता हु। तो ये दास्ताँ शुरू होती है तब जब हो जाता है किसी को प्यार। जब भरी धुप में भी लगता है मौसम सुहाना । जब दिन में भी दिखता है चाँद सुहाना। जब आती है हर पर याद मेहबूब की। जब दिल में उठती है एक हुक सी। अब होई अपने दिलबर से मुलाकातकी अब होगा उनका दीदार। की उनके पास की प्यास में तुम लगते हो भले इंतज़ार। रातो को चाँद को देख देख करना अपने प्यार को याद और उनका इंतज़ार । तब लगते हो तुम एक भोले से प्यारे से बच्चे। तो तुम्हरी हमारी यारी है बडी गहरी। एक पल के लिए भी नहीं भुला में तुमको ऐ इंतज़ार। तुम्हे भुला सकू है इसका भी इंतज़ार। तो अभी बाकि है इंतज़ार.... इंतज़ार और बहुत लम्बा इंतज़ार.......

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